कथा के शुभारम्भ से पूर्व श्रीकृपा चेरिटेबल ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीकान्तजी जोशी एवं मुम्बई भाजपा नगर अध्यक्ष आशीष जी द्वारा गुरुजी को “वेद वेदान्त वाचस्पति” की उपाधि से अलङ्कृत किया गया तथा उन्हें श्रीफल एवं स्वर्णपत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। गुरुजी का परिचय देने के पश्चात् श्री विजय वागीश जी ने अनुरोध किया कि जिस प्रकार स्वामी विवेकानन्द जी के विचार आज १५० वर्ष के पश्चात् भी भारतीयों के लिए विशेषकर युवाओं के लिए प्रासङ्गीक हैं, उसी प्रकार गुरुजी इस श्रीराम कथा से युवाओं को प्रेरित करें।
नव दिवसीय श्रीरामकथा का विषय है –
“युवक श्रीराम” – जिनका प्रतिपादन वाल्मीकीय रामायण, श्रीरामचरितमानस एवं अन्य ग्रन्थों के माध्यम से किया जायेगा।
१. भारत राष्ट्र को इस समय क्रान्ति की आवश्यकता है, किन्तु रक्तिम क्रान्ति की नहीं, वैचारिक क्रान्ति की आवश्यकता। “ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः” यह वृद्धों का नारा है, अब इस इस नारे को परिवर्तित कर
“ॐ क्रान्तिः क्रान्तिः क्रान्तिः” का शङ्खनाद करने की आवश्यकता है।
२. युवक कौन है? कोई अवस्था से युवक नहीं होता, प्रत्युत व्यवस्था से युवक होता है। अन्याय को स्वीकार करना वृद्धावस्था है और संघर्षों से जूझना युवावास्था है। शुक्लयजुर्वेद २२वें अध्याय के प्रथम मन्त्र में जन्म लेने वाले बालक को कहा गया है कि वह युवा हो –
आ ब्रह्म॑न्ब्राह्म॒णो ब्र॑ह्मवर्च॒सी जा॑यता॒मा रा॒ष्ट्रे रा॑ज॒न्यः॒ शूर॑ इष॒व्यो॑ऽतिव्या॒धी म॑हार॒थो जा॑यतां॒ दोग्ध्री॑ धे॒नुर्वोढा॑न॒ड्वाना॒शुः सप्तिः॒ पुर॑न्धि॒र्योषा॑ जि॒ष्णू र॑थे॒ष्ठाः स॒भेयो॒ युवाऽस्य॒ यज॑मानस्य वी॒रो जा॑यतां॒ निका॑मे नि॑कामे नः प॒र्जन्यो॑ वर्षतु॒ फल॑वत्यो न॒ ओष॑धयः पच्यन्तां योगक्षे॒मो नः॑ कल्पताम्॥
– शु.य.वा.मा.सं. २२/२२
किन्तु जन्म लेने वाला बालक युवा कैसा हो सकता है? वस्तुतः जन्म से ही व्यक्ति बालक, युवा एवं वृद्ध हो सकता है। जो जन्म के समय निर्दोष है वह बालक है, जो उत्साहहीन है वह वृद्ध है और जो जन्म से ही उत्साहसम्पन्न है, वह युवा है।
३. भगवान् राम में ही युवाओं की सम्पूर्ण योग्यताएँ हैं, श्रीराम जी सम्पूर्ण युवकों के आदर्श हैं और श्रीसीता जी सम्पूर्ण युवतियों की आदर्श हैं।
४. युवक श्रीराम – ऐसे युवक, जिनके मुख पर उदात्त तेज चमकता है, जिनका प्रत्येक पल राष्ट्रीय अस्मिता की सुरक्षा के लिए समर्पित है, जो “कोदण्डदीक्षागुरु” हैं, जिन्होंने प्रतिज्ञा की है अन्याय के दमन की, कदाचार के समूलोन्मूलन की, जब तक भारत भूमि से आतङ्कवाद का सफाया नहीं हो जाता, तब तक वे अपना धनुष नीचे नहीं रखेंगे, तब तक विश्राम नहीं लेंगे। युवक श्रीराम ने वशिष्ठ मुनि को यही गुरु दक्षिणा दी है, क्या यह युवा एक सामान्य व्यक्ति हो सकता है?
५. श्रीमद्भगवद्गीता में अर्जुन ने कृष्ण को “पुराणपुरुषोत्तम” कहा –
त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणस्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
– भ.गी. ११/३८
उन्हें पुराण क्यों कहा? क्योंकि कृष्ण पुरातनों की भाँति, वृद्धों की भाँति युद्ध का निर्देशन कर रहे थे, स्वयं युद्ध नहीं कर रहे थे, किन्तु कार्य तो युवक ही करता है।
६. कुछ भगवान् को निराकार मानते हैं, कुछ साकार। किन्तु मेरी दृष्टि में भगवान् अक्षराकार हैं। मैंने प्रत्येक कक्षा में ९९% अंक प्राप्त किये हैं, मेरी कथा अन्य कथावाचकों की कथा से अलग है, अतः उनकी कथा से तुलना नहीं की जा सकती।
७. राम किसी एक सम्प्रदाय के नहीं हैं, वे तो पूरे राष्ट्र के हैं, रा अर्थात् राष्ट्र, म अर्थात् मङ्गल –
मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दशरथ अजिर बिहारी॥
– रा.च.मा. १/११२/४
जो मंगलों के मूल हैं और अमंगलों का हरण करते हैं, ऐसे युवक श्रीराम।
८. श्रीकान्त जोशी जी ने कथा से पूर्व गुरु जी से प्रश्न किया था कि भारत राष्ट्र है, किन्तु उसके प्रदेश का नाम महाराष्ट्र क्यों? क्या महाराष्ट्र, भारत राष्ट्र से अधिक महान् अर्थात् बड़ा है? किन्तु अङ्ग तो अङ्गी को कभी supersede नहीं कर सकता। गुरुजी ने कहा कि इस प्रश्न का उत्तर कथा में ही देंगे। और अब गुरु जी उत्तर देते हुये बोले –
महाराष्ट्र शब्द में बहुव्रीहि समास है –
“महद्राष्ट्रं येन तन्महाराष्ट्रम्” – अर्थात् जिसके कारण यह भारत महान हो गया, उसे महाराष्ट्र कहते हैं। महाराष्ट्र की भूमि ने ऐसे वीर सपूत को जन्म दिया है, जिसके इतिहास की कदापि पुनरावृत्ति नहीं सकती, और वे वीर सपूत हैं छत्रपति शिवाजी महाराज। महाराष्ट्र की सीमा में प्रवेश करते ही जिनका नाम गूँजने लगता है- “छत्रपति शिवाजी अन्तर्राष्ट्रीय विमान पत्तन”।
९. श्रीरामजी
“क्षत्रियपति” हैं और शिवाजी
“छत्रपति” हैं, जिन्होंने आततायियों से इस भूमि को मुक्त कर भगवा ध्वज लहराया। यदि भारत के वित्त मन्त्री महोदय शिवाजी को समझ गये होते, तो वे भगवा को आतङ्कवाद का रङ्ग न कहते। भगवान् का रङ्ग भगवत् रङ्ग है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को नववर्ष के पर्व पर प्रयेक घर के ऊपर भगवा ध्वज ही तो लहराता है। शिवाजी ने अन्याय के विरुद्ध जो संघर्ष किया, आततायियों के शरीरों को छेदा, उनके इस पराक्रम का वर्णन करते हुए भूषण कवि कह उठे –
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहन वारी ऊँचे घोर मंदर के अन्दर रहाती हैं।
कंद मूल भोग करें कंद मूल भोग करें तीन बेर खातीं ते वे तीन बेर खाती हैं।
भूषन शिथिल अंग भूषन शिथिल अंग बिजन डुलातीं ते वे बिजन डुलाती हैं।
‘भूषन’ भनत सिवराज बीर तेरे त्रास नगन जड़ातीं ते वे नगन जड़ाती हैं॥
१०. ऐसे वीर शिवा जी महाराज! और उन्हें बनाने में भूमिका किस महापुरुष ने निभाई? “समर्थ गुरु रामदास जी” ने, जिनका नारा था –
“जय रघुवीर समर्थ”। रामदास जी ने यही नारा क्यों दिया? उन्होंने भगवान राम को निर्गुण, निरंजन, निराकार नहीं कहा, रघुनाथ भी नहीं कहा, अपितु रघुवीर कहा। क्यों? क्योंकि रामदास जी ने मानस की यह पंक्ति पढ़ी होगी –
चलत बिमान कोलाहल होई। जय रघुबीर कहैं सब कोई॥
– रा.च.मा. ६/११९/३
११. भारत देश वीरों का, वीराङ्गनाओं का देश रहा है –
“वीरभोग्या वसुन्धरा”। उत्तरप्रदेश के वीररस के कवि श्याम नारायण पाण्डेय गरजकर कहते हैं –
यह तुंग हिमालय किसका है?
हिमगिरी की चट्टानें कहतीं जिसमें पौरुष हो उसका है।
ऐसा नहीं कि पाकिस्तान हमारे सैनिकों के शीश काट कर ले गया और देश के प्रधानमन्त्री कहते हैं कि हम अमरीका से शिकायत करेंगे। जिसकी वाणी में पौरुष नहीं, उसके पाणि (हाथों) में पौरुष कैसे हो सकता है? श्रीराम के पाणि में पौरुष का प्रतीक धनुष बाण है –
पाणौ महासायकचारुचापं नमामि रामं रघुवंशनाथम्॥
– रा.च.मा. अ.का. मं. ३
और वे अपनी उन शक्तिशाली भुजाओं को उठाकर प्रतिज्ञा करते हैं –
निशिचर हीन करहुँ मही भुज उठाइ पन कीन्ह । सकल मुनिन के आश्रमनि जाइ जाइ सुख दीन्ह॥
– रा.च.मा. ३/९
१२. यह वही महाराष्ट्र की भूमि है, जिसने जीजाबाई जैसी वीराङ्गना को जन्म दिया, जिसने अपने पुत्र को “ॐ क्रान्तिः क्रान्तिः क्रान्तिः” का संस्कार बाल्यकाल से ही दिया। पाणिनीय सूत्र के अनुसार “संस्कार” शब्द का प्रयोग किसी वस्तु को सजाने, आभूषण अर्थ में होता है अर्थात् इस जीवन द्वारा इस राष्ट्र को, समाज को सजाया जाता है। संस्कार चैनल भी यही कार्य कर रहा है। श्रोताओं! वह क्षण आप तनिक स्मरण करें, जब जीजाबाई परम धाम जा रही थीं, पुत्र शिवा ने उन्हें रोका – माँ! अभी तो आपको मुझे छत्रपति भी बनाना है न?
१३. आखिर शिवाजी को छत्रपति बना देने के पीछे मूल कारण कौन था? वे थे समर्थ गुरु रामदास और उनका मन्त्र –
श्रीराम जय राम जय जय राम।
इस मन्त्र का अर्थ क्या है? यह समय बिताने के लिए अनपढ़ बाबाओं का कीर्तन नहीं है, अपितु यह
“विजय मन्त्र” है। यदि भारत राष्ट्र को पुनः विजयी बनाना है, तो देश के जन जन, हर मन में इस विजय मन्त्र को पुनः गुंजायमान करना होगा। फिर प्रधानमंत्री यह नहीं कहेगा –
जो तोको कांटा बोये, ताको बोये तू फूल।
अपितु इस विजय मन्त्र के गान के पश्चात् वह हुंकार करेगा –
जो तोको कांटा बोये बोये ताको बोये तु भाला।
वो भी मूर्ख क्या समझेगा किससे पड़ा यह पाला॥
कोई एक गाल पर चाँटा मारे, तो दूसरा गाल आगे कर दो – यह पुरानी बात अब छोड़ो। यदि कोई बिना गलती के एक गाल पर चाँटा मारे, तो उसके गाल पर दस चाँटे जड़े जाने चाहिएं। वेद के मन्त्र उद्घोष करते हैं – पहले तो गलती करो ही मत, यदि कोई दुष्ट बिना गलती करे ही छेड़े तो उसे छोड़ो नहीं, उसका सर्वनाश कर दो।
क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात नहीं “दस लात”
१४. वाल्मीकि रामायण के अनुसार राम जी ने तीन दिनों तक सागर तट पर अनशन किया और जब सागर ने उनकी विनय नहीं सुनी, तो राम क्रुद्ध हो उठे और बोले- लक्ष्मण मेरे धनुष बाण लाओ, मैं इस सागर को आग्नेय बाण से सुखा दूँगा –
असमर्थं विजानाति धिक्क्षमामीदृशे जने।
स दर्शयति साम्ना मे सागरो रूपमात्मनः॥
चापमानय सौमित्रे शरांश्चाशीविषोपमान्।
समुद्रं शोषयिष्यामि पद्भ्यां यान्तु प्लवङ्गमाः॥
– वा.रा. ६/२१/२१,२२
लक्ष्मण जी कहते हैं – प्रभु! क्षमा कीजिए। श्रीराम कहते हैं – चुप लक्ष्मण! क्षमा वहीं शोभा देती है, जहाँ उसका महत्त्व समझा जाये। लेकिन यदि क्षमा को कायरता, नपुंसकता, निर्बलता समझ लिया जाये, यदि राष्ट्र की अस्मिता पर संकट आये, तो सीधे दण्ड की व्यवस्था करनी चाहिये।
१५. मन्त्र का क्या अर्थ है?
“मननात्त्रायत इति मन्त्रः” – मन्त्र का उच्चारण तो करते हैं, किन्तु हम उसका मनन नहीं करते। जब तक मन्त्र का मनन नहीं करेंगे, तब तक मन्त्र में मन्त्रत्व नहीं आयेगा।
१६. श्रीराम जय राम जय जय राम – यह १३ अक्षरों का मन्त्र है और तीन भागों में विभक्त है –
(१) श्रीराम जय
(२) राम जय
(३) जय राम।
‘जि जये’ (धा.पा. ५६१) धातु के अर्थ में श्री अर्थात् सीता जी के साथ राम आपका उत्कर्ष हो, आपका उत्कर्ष हो, आपका उत्कर्ष हो।
राम का उत्कर्ष क्यों? क्योंकि यदि युवक का उत्कर्ष होगा तो राष्ट्र का भी उत्कर्ष होगा।
१७. बालक और वृद्ध तो सहायता की ही अपेक्षा करते हैं, काम तो युवक ही करता है,
युवक कौन? आज देश की विडम्बना है कि, १६ दिसम्बर को जो देश की राजधानी में काला इतिहास रचा गया, क्या वैसा युवक? यह कृत्य किसी युवक ने नहीं, कुत्ते ने किया, वह कुत्ते की संस्कृति है।
तुलसीदास जी मानस में सीता जी का हरण करने जा रहे रावण को कुत्ते की उपमा देते हैं –
सो दशशीष श्वान की नाईं। इत उत चितइ चला भड़ियाईं॥
– रा.च.मा. ३/२९/३
यदि इस देश ने “युवक राम” की सम्यक् व्याख्या की होती तो १६ दिसम्बर की वह घटना न घटी होती। दुर्भाग्यवश देश की युवा पीढ़ी को युवक राम का आदर्श नहीं समझाया गया। इसके विपरीत राम कथा को शेर, कव्वाली से भरकर मनोरञ्जन का साधन बना दिया गया है। लोग कहते हैं कि रामकथा समन्वय करती है। हम मना नहीं करते, हम भी समन्वय चाहते हैं, किन्तु गङ्गा का यमुना से सङ्गम हो सकता है, गटर से नहीं। राम कथा गङ्गा है, उसे कर्म सिद्धान्त रूप यमुना, वेदान्त रूप सरस्वती से मिलाया जाये, किन्तु फ़िल्मी गानों, शेर-कव्वालियों के गटर से नहीं। श्रोता मेरी कथा को कठिन कहते हैं, मेरो कथा में अन्य कथावाचकों जैसी भीड़ नहीं, लेकिन मैं कहता हूँ कि भीड़ तो भेड़ों की होती है, सिंह तो अकेला ही रहता है। एक चन्द्रमा जो कर देता है, उसे हजारों तारागण मिलकर भी नहीं कर पाते।
१८. भगवान् के २४ अवतार हुये, लेकिन और किसी देव की चर्चा क्यों नहीं? तुलसीदास जी कहते हैं हमें ऐसा देवता नहीं चाहिये जो मात्र दूसरे लोक में सहायता करे, प्रत्युत हमें तो ऐसा देव चाहिये, जो लोक और परलोक दोनों में सहायक हो, जो इस जमीन से भी जुड़ा हो, जिसमें वृत्ति और प्रवृति दोनों हों, जो विचार और व्यवहार दोनों से जुड़ा हो, जिसकी कथनी और करनी दोनों में साम्य हो। भागवतकार कहते हैं- कृष्ण श्रवणीय हैं, किन्तु अनुकरणीय नहीं। ऐसे एकमात्र राम ही देवता हैं, जो श्रवणीय भी हैं और अनुकरणीय भी। श्रीकृष्ण की रास लीला श्रवण और चिन्तन करने में सुन्दर है, लेकिन अनुकरण में नहीं। यदि कोई व्यक्ति अनुकरण करने का प्रयास करेगा, तो उसे सीधी सैंडिल पड़ेंगी। किन्तु यदि हम राम की भाँति प्रातःकाल में उठकर अपने माता-पिता गुरु के चरणों में नमन करें, तो पूरे भारत की कितने माता-पिताओं के ह्रदय में उल्लास छा जाये –
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
१९. आज
“रमन्ते योगिनो यस्मिन्” वाले राम नहीं, अपितु समाज को उपयोगी एवं सहयोगी बनाने वाले राम की आवश्यकता। राम शब्द का अर्थ भी तो यही है – राष्ट्र मङ्गल हो जिससे, वे हैं राम (रा – राष्ट्र, म – मङ्गल) –
राजिवनयन धरे धनु सायक। भगत विपति भंजन सुखदायक॥
– रा.च.मा. १/१८/१०
ऐसे युवक हैं राम, किन्तु युवक होने का तात्पर्य यह नहीं कि व्यक्ति आवेशवान् हो जाए और सोचे कि हम जो कहें, वही बड़ों को मानना है। नहीं, ऐसे आवेशी युवा नहीं। हम उनके समक्ष मात्र अपना पक्ष रख सकते हैं।
२०. राजिवनयन धरे धनु सायक। भगत विपति भंजन सुखदायक॥ – युवक राम, जिनके नैन लाल कमल के समान हैं, अर्थात् अत्यन्त सुन्दर हैं, किन्तु साथ ही अपने करों में धनुष बाण भी धारण करते हैं, क्योंकि राम “राष्ट्रदेव” हैं और वे जानते हैं कि इस राष्ट्र की रक्षा शस्त्र से ही समभव है। वर्ष १९९८ में पोखरण में परमाणु परीक्षण से संसार ने भारतीय शक्ति को पहचाना। आखिर हम कब तक कहें कि हम अपना बदला भी लेना नहीं जानते?
२१. तुलसीदासजी वृन्दावन गये तो बोले –
तुलसी मस्तक तब नवे जब धनुष बाण लो हाथ
तुलसीदास जी कहते हैं कि देश को इस समय मुरलीधर की नहीं धनुर्धर की आवश्यकता है। गीता सुनाने के पश्चात् अन्त में कृष्ण ने अर्जुन से यह नहीं कहा कि बैठकर वंशी बजाओ, अपितु यह कहा कि उठो –
तस्मादुत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः ॥
– भ.गी. २/३७
उठें क्यों? भेल पूरी खाने के लिए? नहीं, युद्धाय – युद्ध करने के लिए, कृतनिश्चयः – निश्चय किए हुए।
क्या निश्चय करूँ?
हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
– भ.गी. २/३७
तुम्हारे दोनों हाथों में लड्डू हैं, युद्ध जीतोगे तो पृथ्वी का भोग करोगे, यदि युद्ध करते-करते वीरगति को प्राप्त हुये, तो स्वर्ग का द्वार तुम्हारे लिए खुला है। सावधान! पलायनवाद की भूल न करना।
२२. और यही बात तो स्वामी विवेकानन्द ने भी कही थी। क्या था स्वामी विवेकानन्द का मूलमंत्र? यह भी हम नहीं जानते। उनका मूलमन्त्र था –
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥
– भ.गी. २/३
२३. पुरुष का पुरुषत्व युवावस्था में ही प्रकट होता है। भारतीय दर्शन में पुरुषत्व का तात्पर्य सन्तानोत्पत्ति नहीं, प्रत्युत जो उत्साहपूर्वक राष्ट्र के लिए सब कुछ लुटा देता है, उसे ही पुरुष कहते हैं। सब पुरुष हो सकते हैं, लेकिन राम महापुरुष हैं –
ध्येयं सदा परिभवघ्नमभीष्टदोहं तीर्थास्पदं शिवविरिञ्चिनुतं शरण्यम्।
भृत्यार्तिहं प्रणतपाल भवाब्धिपोतं वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम्॥
त्यक्त्वा सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मीं धर्मिष्ठ आर्यवचसा यदगादरण्यम्।
मायामृगं दयितयेप्सितमन्वधावद्वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम्॥
– भा.पु. ११/५/३३-३४
जिन्होंने पिता की आज्ञा से देवदुर्लभ राजलक्ष्मी का त्याग किया, लेकिन “दयिता” अर्थात् पत्नी के लिए नहीं, अपितु दया होने के कारण इसी महाराष्ट्र में मृग के पीछे दौड़ पड़े –
निगम नेति शिव ध्यान न पावा। मायामृग पाछे सो धावा॥
– रा.च.मा. ३/२७/१२
युवक राम मारीच के पीछे दौड़े कि नकली सोने से भारत को भ्रमित न करो।
२४. कृष्ण का काम मुरली बजाने से नहीं चला, आतङ्कवादी सङ्गीत की भाषा नहीं समझता, दण्ड की, शक्ति की भाषा समझता है। कृष्ण ने सोचा था कि योगेश्वर बनने से काम चल जायेगा, बिना शस्त्र के, लेकिन जब भीष्म ने अर्जुन के शरीर को शस्त्रों से छेद दिया, तो कृष्ण चक्र लेकर दौड़ पड़े। राम ने यह परिस्थिति नहीं आने दी और अतः पहले से ही धनुष नहीं छोड़ा –
राजिवनयन धरे धनु सायक। भगत विपति भंजन सुखदायक॥
– रा.च.मा. १/१८/१०
२५. युवक किसे कहते हैं? जिसमें ३ गुण हों – (१) शील (२) शक्ति (३) सौन्दर्य। शील और शक्ति होगी तो सौन्दर्य भी आ जायेगा। कन्हैया जी से राम जी कम सुन्दर नहीं हैं, क्यों? कन्हैया को कालिय नाग डस लेता है, लेकिन नागिन तो नाग से भी अत्यन्त भयङ्कर होती है, मेघनाथ ने राम को नागपाश में बाँधा, कद्रू के करोड़ों बेटे राम जी के शरीर से चिपक गए, लेकिन उन्हें डसने का दुःसाहस नहीं किया।
सीताराम जय सीताराम
सीताराम जय सीताराम
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संकलनकर्त्री: प्रिया गर्ग
सम्पादक: नित्यानन्द मिश्र,अपूर्व अग्रवाल