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जीव का स्वरूप है श्री रामजी का नित्य दास होना | मैं मन,बुद्धि,अहंकार,शरीर, इंद्रिय नही हूँ|मैं विशुद्ध जीवात्मा हूँ |मैं रामचंद्रजी का दास हूँ|केवल यही भाव होगा|यही भाव मोक्ष है|
अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी नारी पर दृष्टि मत डालना | यह वेद की आज्ञा है |
मानव को शिक्षा देने प्रभु श्री राम आए | और मानव को कर्तव्य की दीक्षा देने श्री राम ब्राह्मण तुलसीदासजी की वाणी में श्री श्रीरामचरितमानस के रूप में आए |