Welcome to the website blog. This blog is run by volunteers of Shri Tulsi Peeth Seva Nyas and Jagadguru Rambhadracharya Handicapped University. The blog aims to bring out excerpts from the works of Jagadguru Rambhadracharya (Guruji). A common verse recited about Guruji is रामभद्रो हि जानाति रामभद्रसरस्वतीम् । रामभद्रो हि जानाति रामभद्रसरस्वतीम् ॥ “Verily, Rāmabhadra (Rāmabhadrācārya) […]
श्रीगङ्गामहिम्नस्तोत्रम् (१९९७) माँ गंगा की स्तुति में गुरुदेव द्वारा प्रणीत एक संस्कृत स्तोत्र है। इसकी रचना के साथ एक रोचक घटना जुड़ी है। १९९७ ई की ग्रीष्म ऋतु में प्रति वर्ष की भाँति गुरुदेव का प्रवास हरिद्वार के वसिष्ठायनम् आश्रम में हुआ। एक दिन प्रातःकालीन श्रीराघवसेवा के समय डॉ सुरेन्द्र शर्मा सुशील के मुख से अचानक गुरुदेव के लिए सम्बोधन में “महाराज जी” शब्द निकल गया। तुरन्त ही पूज्य आचार्यचरण ने स्नेहपूर्वक प्रतिवाद करते हुए कहा कि मैं महाराज नहीं हूँ । महाराज तो वह होता है जो भोजन बनाता है। मैं तुम्हें अभी अपनी सात्त्विक प्रतिभा के बल पर सिद्ध करता हूँ कि मैं महाराज नहीं हूँ। इस कथन के तुरन्त पश्चात् पूज्य जगद्गुरुजी ने शिखरिणी, हरिणी, मालिनी, अनुष्टुप् और वसन्ततिलका छन्दों में श्रीगङ्गाजी के स्तुतिपरक दिव्य, भव्य, सरस, सुमधुर एवं सारगर्भित ३७ श्लोकों का सद्यःप्रणयन करके अपने लोकोत्तर वैदुष्य एवं भगवत्प्रेमाभक्ति का साक्षात्कार कराया।