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श्रीरामचरितमानस जी में भगवान राम के चार आनंद बताए गये हैं : सत् , चित , परम और प्रेम |
निराकार का अर्थ है – निर्लीनः आकारः यस्मिन सः निराकारः – अर्थात जिसमें सारे आकार छिपे हुए हैं,वो परमात्मा है निराकार |
वो युवक बड़े से बड़ा कार्य कर सकता है जो अपने चरित्र से समझौता नही करता |
गुरुदेव की कृपा के बिना जीव अहंकार से मुक्त नही हो सकता, सिद्धांत यही है |
जिसके जीवन में अहंकार होगा, वो निरंतर हारता रहेगा |
एक बार राघव जी के गुण जिसे पकड़ लेते हैं , फिर उस जीव का कभी त्याग नही करते |
उतना पाप जीव कर नही सकता जितना श्री राम हर सकते हैं |
जो भी भगवान से विरुद्ध चले, उसे छोड़ देना ही भक्ति का सिद्धांत है |
श्री रामचरितमानस सामान्य ग्रंथ नही हैं | इनको पढ़ते पढ़ते कभी ना कभी श्री राम के दर्शन होंगे, अवश्य होंगे |
वो इतिहास ह्रास बन के रह जाएगा जहाँ श्री रघुनथजी के चरित्रों का गुणगान ना हो |