पद २०५


॥ २०५ ॥
श्रीमूरति सब वैष्णव लघु बड़ गुननि अगाध।
आगे पीछे बरन तें जिनि मानौ अपराध॥

मूलार्थ – संपूर्ण वैष्णव भगवान्‌की मूर्ति ही हैं, और सब छोटे-बड़े होनेपर भी अगाध गुणोंसे युक्त हैं। अथवा भगवान् श्री तुलसी, भगवान्‌की शालग्राम मूर्ति, और सभी वैष्णव – ये सब-के-सब भगवन्मूर्ति हैं। अतः किसीका वर्णन आगे हो या किसीका वर्णन पीछे, किसीको अपराध नहीं मानना चाहिये। यहाँ क्रम विवक्षित नहीं है, जैसा ध्यानमें आया वैसा वर्णन कर दिया।