पद १५७


॥ १५७ ॥
भक्ति भाव जूड़ैं जुगल धर्मधुरंधर जग बिदित॥
बाँबोली गोपाल गुननि गंभीर गुनारट।
दच्छिन दिसि विष्णुदास गाँव कासीर भजन भट॥
भक्तनि सों यह भाव भजै गुरु गोबिँद जैसे।
तिलक दाम आधीन सुबर संतनि प्रति तैसे॥
अच्युत कुल पन एक रस निबह्यो ज्यौं श्रीमुखगदित।
भक्ति भाव जूड़ैं जुगल धर्मधुरंधर जग बिदित॥

मूलार्थ – भक्तिभावसे परिपूर्ण दो गुरुभाई जुगल अर्थात् जोड़ी थे। वे धर्मके धुरन्धर थे और जगत्‌में प्रसिद्ध थे। उनमेंसे एक थे श्रीगोपालजी जो बाँबोलीमें जन्मे थे और गुनारटमें रहते थे। वे गुणोंमें गम्भीर थे। दूसरे थे श्रीविष्णुदासजी जो दक्षिण देशमें जन्मे थे, उनका गाँव काशीर था। वे भजनमें भट्ट थे, अर्थात् भजनमें वीर थे। गोपालजी और विष्णुदासजी – दोनों ही भक्तोंके प्रति अत्यन्त भाव रखते थे और उन्हें गुरु और गोविन्द जैसा भजते थे। तिलक दाम आधीन सुबर संतनि प्रति तैसे अर्थात् वे संतोंके प्रति भाव रखते हुए तिलक और कण्ठीके उसी प्रकार अधीन रहते थे जैसे कोई महिला अपने सुबर अर्थात् श्रेष्ठ पतिके अधीन रहती है। अच्युत कुल अर्थात् वैष्णव संतोंके प्रति उनका एकरस प्रण था और उसी प्रकार उन्होंने निर्वहण किया जिस प्रकार श्रीमुखगदित अर्थात् श्रीमुख भगवान्‌के द्वारा कहा गया है।