पद १५०


॥ १५० ॥
(श्री)अग्र अनुग्रह तें भए सिष्य सबै धर्म की ध्वजा॥
जंगी प्रसिध प्रयाग बिनोदि पूरन बनवारी।
नरसिंह भक्त भगवान दिवाकर दृढ़ ब्रतधारी॥
कोमल हृदय किसोर जगत जगनाथ सलूधौ।
औरौ अनुग उदार खेम खीची धर्मधीर लघु ऊधौ॥
त्रिबिध तापमोचन सबै सौरभ प्रभु जिन सिर भुजा।
(श्री)अग्र अनुग्रह तें भए सिष्य सबै धर्म की ध्वजा॥

मूलार्थ – श्रीअग्रदेवाचार्य सद्गुरुदेवके अनुग्रहसे उनके सभी शिष्य धर्मकी ध्वजा बन गए। जिनमें – (१) जंगीजी जो प्रयागमें प्रसिद्ध हैं (अथवा जंगीजी और प्रसिद्ध प्रयागदासजी) (२) विनोदीजी (३) पूरणजी (४) बनवारीजी (५) भक्त नरसिंहदासजी (६) भगवानदासजी (७) दृढ़ व्रत धारण करने वाले दिवाकरजी (८) कोमल हृदय वाले किशोरजी (९) जगतजी (१०) सलूधौमें रहने वाले जगन्नाथजी। और भी अग्रदेवजीके अनेक उदार सेवक हुए जिनमें – (११) खेमजी (१२) खींचीजी (१३) धर्ममें धीर रहने वाले लघु ऊधौ अर्थात् छोटे उद्धवजी – इस प्रकार ये सब तीनों तापोंको नष्ट करने वाले हुए। आम्रवृक्षके समान सुगन्धित श्रीअग्रदासजीकी भुजा इनके सिरपर विराजमान हुई।