पद १३६


॥ १३६ ॥
हरिदास भलप्पन भजन बल बावन ज्यों बढ़्यो बावनो॥
अच्युतकुल सों दोष सपनेहुँ उर नहिं आनै।
तिलक दाम अनुराग सबन गुरुजन करि मानै॥
सदन माँहि बैराग्य बिदेहन की सी भाँती।
रामचरन मकरंद रहत मनसा मदमाती॥
जोगानंद उजागर बंस करि निसिदिन हरिगुन गावनो।
हरिदास भलप्पन भजनबल बावन ज्यों बढ़्यो बावनो॥

मूलार्थश्रीहरिदासजी भलप्पन अर्थात् अपने भलेपन एवं भजनबलके कारण वामन होते हुए भी अर्थात् छोटे आकारके होते हुए भी बावन भगवान् विराट्की भाँति बढ़े अर्थात् उनका आकार छोटा था परन्तु उनका व्यक्तित्व वामन भगवान्‌के समान बहुत बड़ा था। हरिदासजी अच्युतकुल अर्थात् विरक्त­वैष्णव­कुलके दोषोंको स्वप्नमें भी हृदयमें नहीं लाए अर्थात् वे अच्युतकुलके प्रति कभी भी हृदयमें दोषबुद्धि नहीं रखते थे। उनका तिलक एवं दाम अर्थात् कण्ठीसे बहुत अनुराग था। सभी तिलकधारी एवं कण्ठीधारी वैष्णवोंको वे अपने गुरुजनोंके समान जानते थे। भवनमें रहते हुए भी वे उसी प्रकार वैराग्य­वृत्तिसे रहते थे जैसे निमिवंशमें उत्पन्न सभी जनक राजागण रहते थे। इसीलिये कहा – सदन माँहि बैराग्य बिदेहन की सी भाँती। घरमें भी उन्हें उसी प्रकार वैराग्य था जैसे जनक राजाओंको था। उनकी मनोवृत्ति श्रीरामजीके चरणकमलके मकरन्द­रससे मत्त रहती थी। उन्होंने श्रीयोगानन्दजीके वंशको उजागर किया था तथा वे निरन्तर श्रीहरिका गुणगान गाते रहते थे। अर्थात् श्रीवामन हरिदासजी महाराज योगानन्दजी महाराज, जो अनन्तानन्दजीके शिष्य थे, उनके कृपापात्र थे।