पद १३३


॥ १३३ ॥
रसिक रँगीलो भजन पुंज सुठि बनवारी स्याम को॥
बात कबित बड़ चतुर चोख चौकस अति जाने।
सारासार बिबेक परमहंसनि परवाने॥
सदाचार संतोष भूत सब को हितकारी।
आरज गुन तन अमित भक्ति दसधा ब्रतधारी॥
दर्शन पुनीत आशय उदार आलाप रुचिर सुखधाम को।
रसिक रँगीलो भजन पुंज सुठि बनवारी स्याम को॥

मूलार्थश्रीबनवारीदासजी भगवान्‌के रंगीले रसिक और भजनके पुञ्ज थे। वे काव्यरचना तथा भगवद्वार्तामें बहुत चतुर थे। वे चोख अर्थात् भगवान्‌की चातुर्यमयी वार्ताको बहुत अच्छा जानते थे। उनके सारासार­विवेकको परमहंसोंने प्रमाणित किया था। बनवारीदासजी सदाचारी, संतोषी और संपूर्ण जीवोंके हितकारी अर्थात् उपकारी थे। उनके शरीरमें आर्योंके अनेक गुण थे। बनवारीदासजीने दशधा भक्तिका व्रत धारण किया था। उनका दर्शन बहुत पवित्र था। उनका आशय अत्यन्त उदार था। उन सुखके धाम बनवारीदासजीका वार्तालाप भी बहुत मधुर हुआ करता था।