पद १२८


॥ १२८ ॥
कृष्णबिरह कुंती सरीर त्यों मुरारि तन त्यागियो॥
बिदित बिलौंदा गाँव देश मुरधर सब जानै।
महामहोच्छो मध्य संत परिषद परवानै॥
पगनि घूँघुरू बाँधि राम को चरित दिखायो।
देसी सारँगपाणि हंस ता संग पठायो॥
उपमा और न जगत में पृथा विना नाहिंन बियो।
कृष्णबिरह कुंती सरीर त्यों मुरारि तन त्यागियो॥

मूलार्थ – जिस प्रकार श्रीकृष्ण भगवान्‌के वियोगमें कुन्तीजीने शरीरको छोड़ा था, उसी प्रकार मुरारिदासजीने भी अपना शरीर भगवान् श्रीरामके वियोगमें छोड़ा। मुरधर देशमें बिलौंदा नामका गाँव सभी जानते हैं, उसीमें उनका जन्म हुआ था। महा­महोत्सवमें संतोंके समक्ष मुरारिदासजीको भगवान्‌का पार्षद प्रमाणित किया गया था। एक बार अपने चरणमें घुँघरू बाँधकर उन्होंने नृत्यमें ही श्रीरामजीका चरित्र दिखा दिया था, और श्रीरामजीके वनगमनका प्रसंग जब मुरारीदासजी प्रस्तुत कर रहे थे और उन्होंने देशी रागमें भगवान्‌का वह चरित्र गाया, फिर तो शार्ङ्गपाणि भगवान्‌के साथ अपने हंसरूप प्राणोंको ही भेज दिया। अथवा देशी सारङ्ग रागमें उन्होंने भगवान्‌का चरित्र प्रस्तुत किया और भगवान्‌के वनगमनके समय ही उन्होंने अपने प्राणोंको भगवान्‌के साथ भेज दिया। कुन्तीके बिना जगत्‌में मुरारिदासजीकी और कोई उपमा हो ही नहीं सकती। भगवती कुन्ती उस दशा का एक ही मात्र उपमान हैं। जिस प्रकार कुन्तीने भगवान्‌के वियोगमें अपना शरीर छोड़ा था, उसी प्रकार मुरारिदासजीने भी अपने शरीरको भगवान् रामके वियोगमें छोड़ दिया।