पद १२१


॥ १२१ ॥
अभिलाष उभै खेमाल का ते किसोर पूरा किया॥
पाँयनि नूपुर बाँधि नृत्य नगधर हित नाच्यो।
रामकलस मन रली सीस ताते नहिं बाँच्यो॥
बानी बिमल उदार भक्ति महिमा बिस्तारी।
प्रेमपुंज सुठि सील बिनय संतन रुचिकारी॥
सृष्टि सराहै रामसुवन लघु बैस लछन आरज लिया।
अभिलाष उभै खेमाल का ते किसोर पूरा किया॥

मूलार्थ – श्रीखेमालरत्नके दोनों मनोरथोंको उनके पौत्र श्रीकिशोरसिंहजीने पूर्ण किया। उन्होंने सतत चरणमें नूपुर बाँधकर नगधर अर्थात् गोवर्धनधारी भगवान्‌के सम्मुख नृत्य किया। उनका मन श्रीरामजीकी पूजामें सतत कलशको लेकर आनेमें लगा रहता था, और उससे (कलशसे) उनका सिर कभी वञ्चित नहीं हुआ। उनकी वाणी अत्यन्त विमल थी। वे उदार थे। भक्तोंकी महिमाका उन्होंने विस्तार किया। उनका व्यक्तित्व प्रेमका पुञ्ज था। उनका शील अत्यन्त सुन्दर था और उनका भलप्पन और विनय संतोंके लिये रुचिकर था। सभी सृष्टि उनकी सराहना करती थी। श्रीरामरयनजीके पुत्रने थोड़ी ही अवस्थामें आरज अर्थात् श्रेष्ठ लक्षणोंको स्वीकार कर लिया था।