पद ११८


॥ ११८ ॥
खेमाल रतन राठौर के अटल भक्ति आई सदन॥
रैना पर गुन राम भजन भागवत उजागर।
प्रेमी प्रेम किशोर उदर राजा रतनाकर॥
हरिदासन के दास दसा ऊँची धुजधारी।
निर्भय अननि उदार रसिक जस रसना भारी॥
दशधा संपति संत बल सदा रहत प्रफुलित बदन।
खेमाल रतन राठौर के अटल भक्ति आई सदन॥

मूलार्थश्रीखेमालरत्न राठौरजीके घरमें तो अटल भक्ति आ गई थी। उनके पुत्र रामरयनजी भगवद्गुण­परायण थे, श्रीरामजीका भजन करते थे और वे सर्वविदित अथवा प्रसिद्ध भागवत अर्थात् भक्त थे। रामरयनजीके पुत्र प्रेमी किशोर­सिंहजी भगवान्‌के प्रति अत्यन्त प्रेम करते थे। ये सभी राजागण रतनाकर अर्थात् भक्तिके सागरके समान थे। इनके उदरमें अर्थात् अन्तःकरणमें भगवान्‌की भक्ति रत्नके समान विराजमान थी। ये सभी राजागण भगवान् और भगवान्‌के भक्तोंके दास थे। इन्होंने जगत्‌में ऊँची धर्मध्वजाको धारण किया था। ये निर्भय थे, अनन्य थे, उदार थे और इनकी रसनापर रसिकशेखर भगवान्‌का यश विराजमान रहा करता था। इनके जीवनमें दशों लक्षण वाले प्रेमकी संपत्ति थी। ये संतोंको निहारकर निरन्तर प्रफुल्लित मुख वाले थे अर्थात् इनके मुखपर प्रसन्नता रहा करती थी।