पद १०२


॥ १०२ ॥
हरि सुजस प्रचुर कर जगतमें ये कबिजन अतिसय उदार॥
बिद्यापति ब्रह्मदास बहोरन चतुर बिहारी।
गोबिन्द गंगाराम लाल बरसनियाँ मंगलकारी॥
प्रियदयाल परसराम भक्त भाई खाटीको।
नंदसुवन की छाप कबित्त केसव को नीको॥
आसकरन पूरन नृपति भीषम जनदयाल गुन नाहिन पार।
हरि सुजस प्रचुर कर जगतमें ये कबिजन अतिसय उदार॥

मूलार्थ – जिन्होंने भगवान्‌के सुयशको इस जगत्‌में प्रसिद्ध किया, ऐसे कविजन अत्यन्त उदार हैं। इनमें (१) श्रीविद्यापतिजी (२) श्रीब्रह्मदासजी (३) श्रीबहोरनजी (४) श्रीचतुरजी (५) श्रीबिहारीजी (६) श्रीगोविन्द सखाजी (७) श्रीगङ्गारामजी (८) श्रीलालजी जो कि मङ्गलकारी बरसानामें विराजते हैं और जिन्हें बरसनियाँ कहा जाता है (९) श्रीप्रियदयालजी (१०) श्रीपरशुरामजी (११) श्रीभक्तभाईजी (१२) श्रीखाटीकजी (१३) जिनकी नंदसुवनकी छाप है ऐसे श्रीकेशवजी, जिनकी कविता अत्यन्त सुन्दर होती है (१४) श्रीआशकरनजी (१५) महाराज श्रीपूर्णजी (१६) श्रीभीष्मजी और (१७) श्रीजनदयालजी, जिनके गुणोंका पार ही नहीं है – ऐसे अत्यन्त उदार कविजनोंने भगवान्‌के सुयशको संसारमें प्रचुर अर्थात् प्रसिद्ध किया।