पद ०९४


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बृंदावनकी माधुरी इन मिलि आस्वादन कियो॥
सर्बस राधारमन भट्ट गोपाल उजागर।
हृषीकेस भगवान बिपुल बिट्ठल रससागर॥
थानेश्वरी जग(न्नाथ) लोकनाथ महामुनि मधु श्रीरंग।
कृष्णदास पंडित उभय अधिकारी हरि अंग॥
घमंडी जुगलकिसोर भृत्य भूगर्भ जीव दृढ़व्रत लियो।
बृंदावनकी माधुरी इन मिलि आस्वादन कियो॥

मूलार्थ – श्रीवृन्दावनकी माधुरीका इन लोगोंने मिलकर आस्वादन किया – (१) जिनके राधारमण भगवान् सर्वस्व हैं ऐसे प्रसिद्ध श्रीगोपाल­भट्टजी (२) श्रीहृषीकेशजी (३) श्रीअलि­भगवान्‌जी (४) रसके समुद्र श्रीविट्ठल­विपुलदेवजी (५) थानेश्वरी श्रीजगन्नाथजी (६) श्रीलोकनाथजी (७) महामुनि श्रीमधु­गोस्वामीजी (८) श्रीरङ्गजी (९) श्रीकृष्णदास ब्रह्मचारीजी और (१०) श्रीकृष्णदास पण्डितजी – जो दोनों ही श्रीहरि-अङ्गके अधिकारी बने (११) युगल­किशोरजीके सेवक घमंडी श्रीउद्धव­देवाचार्यजी (१२) श्रीभूगर्भजी और (१३) श्रीजीव गोस्वामीजी। इन्होंने वृन्दावन वासका दृढ़व्रत लिया।

श्रीथानेश्वरी जगन्नाथजीको तो भगवान्‌में इतना प्रेम था कि वे जगन्नाथजीके दर्शनके लिये जाना चाहते थे, परन्तु उनके मनमें एक बात आई कि उनके न रहनेसे यहाँ संत­सेवा कैसे होगी? इसलिये उन्होंने जानेका कार्यक्रम स्थगित कर दिया। उनकी प्रीति देखकर भगवान् जगन्नाथने उनके घरमें ही जाकर उन्हें दर्शन दे दिया। श्रीलोकनाथजी परम भागवत थे। वे अपने घरसे विरक्त होकर वृन्दावनमें आए और उन्होंने भगवान्‌के दर्शन किये। श्रीमधु­गोस्वामीको साक्षात् भगवान्‌की प्राप्ति हुई। कृष्णदास ब्रह्मचारीजीको सनातन­गोस्वामीने मदन­मोहनजीकी सेवा दी। पण्डित कृष्णदासका प्रतिदिन भगवान्‌को सौ श्लोक सुनानेका नियम था। एक दिन संतोंके आनेपर जब व्यतिक्रम हो गया, तो भगवान् भी दुःखी हो गए। तब कृष्णदासजीने कहा – “आप दुःखी क्यों होते हैं? आपश्रीने ही तो कहा है कि संतोंकी सेवाको आपकी सेवासे भी वरीयता देनी चाहिये।”