पद ०८५


॥ ८५ ॥
हरिराम हठीले भजन बल राना को उत्तर दियो॥
उग्र तेज ऊदार सुघर सुथराई सींवाँ।
प्रेमपुंज रसरासि महा गदगद स्वर ग्रीवाँ॥
भक्तन को अपराध करै ताको फल गायो।
हिरनकसिपु प्रह्लाद परम दृष्टांत दिखायो॥
सस्फुट वक्ता जगत में राजसभा निधरक हियो।
हरिराम हठीले भजन बल राना को उत्तर दियो॥

मूलार्थहठीले हरिरामजीने भजनके बलसे राणाजीको भी उत्तर दे दिया था। उनका तेज अत्यन्त उग्र था। वे उदार थे। वे सुन्दरता और स्वच्छताकी परिसीमा थे, अर्थात् सब प्रकारसे उनके जीवनमें शुद्धता थी। हरिरामजी प्रेमके पुञ्ज और रसकी राशि थे। उनका स्वर और उनका गला सदैव गद्गद रहा करता था। जो भक्तोंका अपराध करता है, उसका फल उन्होंने गाकर सुनाया, और हिरण्यकशिपु और प्रह्लादका परम दृष्टान्त दिखाया। वे इस संसारमें स्पष्ट वक्ता थे। राजसभामें भी उनका हृदय निधरक अर्थात् निर्भीक था। हठीले हरिरामजीने अपने भजनके बलसे राणाको भी उत्तर दे दिया अर्थात् राणाको चुप कराकर उनके द्वारा गृहीत भूमि संतोंको दिलवा दी थी।