पद ०३२


॥ ३२ ॥
चतुर महंत दिग्गज चतुर भक्ति भूमि दाबे रहैं॥
श्रुतिप्रज्ञा श्रुतिदेव ऋषभ पुहकर इभ ऐसे।
श्रुतिधामा श्रुतिउदधि पराजित बामन जैसे॥
रामानुज गुरुबंधु बिदित जग मंगलकारी।
शिवसंहिता प्रनीत ग्यान सनकादिक सारी॥
इँदिरा पधति उदारधी सभा साखि सारँग कहैं।
चतुर महंत दिग्गज चतुर भक्ति भूमि दाबे रहैं॥

मूलार्थ – श्रीरामानुजाचार्यजीके गुरुभाई चार महंत – (१) श्रुतिप्रज्ञाचार्य (२) श्रुतिदेवाचार्य (३) श्रुतिधामाचार्य और (४) श्रुति उदधि आचार्य – ये चारों क्रमशः ऋषभ, पुष्कर, पराजित और वामन जैसे दिग्गजोंके समान हैं, जिनमेंसे श्रुतिप्रज्ञ ऋषभके समान, श्रुतिदेव पुष्करके समान, श्रुतिधाम पराजितके समान और श्रुति उदधि वामनके समान – ये चारों आचार्य रामानुजाचार्यके गुरुबन्धु हैं। ये सारे संसारमें विदित हैं, मङ्गलको करने वाले हैं, और शिवसंहितामें अर्थात् अहिर्बुध्न्य­संहितामें प्रणीत ज्ञानके लिये सनकादिके समान हैं। इन्दिराजीकी पद्धति अर्थात् श्रीसंप्रदायमें उदार बुद्धिवाले ये आचार्य – जिनको सभा साक्षात् सारङ्ग दिग्गजके समान कहती है – ये चारों महंत चार दिग्गजोंके समान भक्ति रूपी पृथ्वीको दाबे रहते हैं अर्थात् संभालकर रखते हैं।