॥ २१४ ॥
काहू के बल जोग जग कुल करनी की आस।
भक्तनाममाला अगर (उर) बसौ नरायनदास॥
मूलार्थ – किसीको योगका बल होता है, किसीको यज्ञका बल होता है, किसीको अपने कुलकी करनीपर विश्वास होता है परन्तु मुझ नारायणदासको तो किसीका विश्वास नहीं है, और न किसीका बल है। अतः मुझ नारायणदासके हृदयमें भगवान्के भक्तों की यह भक्तनाममाला अथवा भक्तरत्नमाला और श्रीअग्रदास दोनों ही निवास करें।
इस प्रकार भक्तोंकी कृपासे और भगवान्की प्रेरणासे मुझ जगद्गुरु रामानन्दाचार्य स्वामी रामभद्राचार्यने थोड़े ही दिनोंमें श्रीभक्तमालकी मूलार्थबोधिनी टीका संपन्न कर ली।
दिनैरल्पैः कृता टीका मया मूलार्थबोधिनी।
भक्तमाले रामभद्राचार्येण तुष्टये सताम्॥
॥ श्रीः ॥
॥ समस्त भक्तोंकी जय हो ॥