पद २१२


॥ २१२ ॥
अच्युतकुल जस इक बेरहूँ जिनकी मति अनुरागि।
तिनकी भगति सुकृत में निश्चै होय बिभागि॥

मूलार्थ – जिनकी बुद्धि भगवान्‌के अच्युतकुल अर्थात् भगवान्‌के विरक्त वैष्णवोंके यशमें एक भी बार अनुरक्त हो जाती है, वे व्यक्ति उन संतोंकी भक्ति और उनके सुकृतमें निश्चित रूपसे विभागी बन जाते हैं अर्थात् उन संतोंकी भक्ति और उनके पुण्य उनको भी प्राप्त होते हैं।