पद २१०


॥ २१० ॥
(जो) हरिप्रापति की आस है तो हरिजन गुन गाव।
नतरु सुकृत भुँजे बीज लौं जनम जनम पछिताव॥

मूलार्थ – यदि श्रीहरिकी प्राप्तिकी आशा है तो भगवान्‌के भक्तोंका गुणगान करना चाहिये, नहीं तो भुने हुए बीजकी भाँति सुकृत व्यर्थ हो जाता है, अनेक जन्मोंतक पश्चात्ताप करना पड़ता है।