॥ २०९ ॥
हरिजन के गुन बरनते (जो) करै असूया आय।
इहाँ उदर बाढ़ै बिथा अरु परलोक नसाय॥
मूलार्थ – भक्तोंके गुणोंका वर्णन करते समय यदि कोई असूया करता है अर्थात् उनमें दोष देखता है तो यहाँ उसके पेट बढ़ता है (अर्थात् जलोदर आदि रोग हो जाते हैं), उसकी बिथा अर्थात् व्यथा बढ़ती है, और उसका परलोक भी नष्ट हो जाता है। इसलिये कभी भक्तोंके गुणोंमें दोषदर्शन नहीं करना चाहिये।