पद २०७


॥ २०७ ॥
चारि जुगन में भगत जे तिनके पद की धूरि।
सर्वसु सिर धरि राखिहौं मेरी जीवन मूरि॥

मूलार्थ – चारों युगोंमें जो भक्त हैं उनके चरण­कमलकी धूलिको मैं अपना सर्वस्व मानकर अपने सिर पर धारण करूँगा, और ये मेरे जीवनके लिये मूरि अर्थात् संजीवनी हैं।