पद २०६


॥ २०६ ॥
फल की शोभा लाभ तरु तरु शोभा फल होय।
गुरू शिष्य की कीर्ति में अचरज नाहीं कोय॥

मूलार्थ – जैसे फलकी शोभा लाभदायक वृक्षसे होती है, और वृक्षकी शोभा फलसे, अर्थात् फल वृक्षको सुशोभित करता है और वृक्ष फलको, वृक्षसे फल उत्पन्न होता है और फलके बीजसे वृक्ष जन्म लेता है – इसी प्रकार गुरु-शिष्यकी कीर्तिमें किसीको आश्चर्य नहीं होना चाहिये, दोनों समान ही तो हैं। एक वृक्ष है और एक फल है।