॥ २०३ ॥
पादप पेड़हिं सींचते पावै अँग अँग पोष।
पूरबजा ज्यों बरन तें सुनि मानियो सँतोष॥
मूलार्थ – यहाँ पेड़ शब्दका अर्थ है जड़। यह अवधी भाषाका शब्द है, और आज भी हम जड़को पेड़ ही कहते भी हैं। जिस प्रकार वृक्षकी पेड़ी यानि जड़में सींचनेसे वृक्षके संपूर्ण अङ्गोंमें संतोष हो जाता है या संपूर्ण अङ्गोंको पोषण मिल जाता है, इसी प्रकार पूर्व आचार्योंके वर्णनसे सबको संतोष हो ही जाना चाहिये अथवा सबको संतोष मान ही लेना चाहिये।