पद १९६


॥ १९६ ॥
श्रीरामदास रस रीति सों भली भाँति सेवत भगत॥
सीतल परम सुसील बचन कोमल मुख निकसै।
भक्त उदित रबि देखि हृदय बारिज जिमि बिकसै॥
अति आनँद मन उमगि संत परिचर्या करई।
चरन धोइ दंडवत बिबिध भोजन बिस्तरई॥
बछवन निबास बिश्वास हरि जुगल चरन उर जगमगत।
श्रीरामदास रस रीति सों भली भाँति सेवत भगत॥

मूलार्थश्रीरामदासजी रसिक­रीति द्वारा भली-भाँति भक्तोंकी सेवा करते थे। वे स्वयं शीतल एवं अत्यन्त सुशील थे। उनके मुखसे कोमल वचन ही निकला करता था। भक्त रूपी सूर्यनारायणको उदित देखकर उनका हृदय कमल जैसे फूल जाता था। वे अत्यन्त आनन्दसे उमगित मन होकर निरन्तर संतोंकी पूजा व सेवा करते थे। वे भक्तोंके चरण धोते थे, दण्डवत् करते थे और विविध प्रकारका भोजन अर्थात् प्रसाद उन्हें पवाते थे। बछवन निबास बिश्वास हरि उनका निवास बछवन ग्राममें था और वे भगवान्‌के प्रति विश्वास करते थे। उनके हृदयमें सीता­रामजीके युगलचरण जगमगाते रहते थे।