पद १९१


॥ १९१ ॥
बूड़िये बिदित कान्हर कृपालु आत्माराम आगमदरसी॥
कृष्णभक्ति को थंभ ब्रह्मकुल परम उजागर।
छमासील गंभीर सबै लच्छन को आगर॥
सर्बसु हरिजन जानि हृदय अनुराग प्रकासै।
असन बसन सन्मान करत अति उज्ज्वल आसै॥
सोभूराम प्रसाद तें कृपादृष्टि सबपर बसी।
बूड़िये बिदित कान्हर कृपालु आत्माराम आगमदरसी॥

मूलार्थ – बूड़िया ग्राममें निवास करने वाले प्रसिद्ध श्रीकान्हरदासजी कृपालु, आत्माराम और आगमदर्शी थे। वे भगवान् श्रीकृष्णकी भक्तिके स्तम्भ थे। वे ब्राह्मण कुलमें प्रकट होकर उसे उजागर कर रहे थे। वे क्षमाशील, गम्भीर और सभी लक्षणोंके आगार थे। भगवान्‌के भक्तोंको सर्वस्व जानकर और उन्हें देखकर कान्हरदासजीके हृदयमें अनुराग प्रकाशित हो जाता था। वे अन्न और वस्त्र आदिसे उनका सम्मान करके सब कुछ दान दे देते थे। उनका आशय अर्थात् विचार एवं हृदय अत्यन्त उज्जवल था। सोभूरामजीके प्रसादसे उन्होंने अपनी कृपादृष्टिकी सबपर वर्षा की अर्थात् कान्हरदासजीके गुरुदेवका नाम था सोभूरामजी, जिनकी चर्चा हम पहले कर चुके हैं।