पद १९०


॥ १९० ॥
सोदर सोभूराम के सुनौ संत तिनकी कथा॥
संतदास सदबृत्ति जगत छोई करि डार्यो।
महिमा महा प्रबीन भक्तिवित धर्म विचार्यो॥
बहुर्यो माधवदास भजनबल परिचै दीनो।
करि जोगिनि सों बाद बसन पावक प्रति लीनो॥
परमधर्म बिस्तार हित प्रगट भए नाहिंन तथा।
सोदर सोभूराम के सुनौ संत तिनकी कथा॥

मूलार्थ – श्रीसोभूरामजीके दो सगे भाई थे – संतदासजी और माधवदासजी। हे संतों! उनकी कथा सुनो। सोभूरामजीके प्रथम छोटे भाई संतदास मुनियोंकी-सी वृत्ति रखते थे। उन्होंने जगत्‌को निस्सार करके (मानकर) छोड़ दिया था। वे महामहिमासे युक्त थे अर्थात् उनकी महिमा बहुत बड़ी थी। वे प्रवीण थे और भक्ति रूप धनको ही उन्होंने धर्म मान लिया था। इसी प्रकार फिर दूसरे छोटे भाई माधवदास थे, जिन्होंने भजनके बलका बहुत परिचय दिया। पाखण्डी योगियोंसे विवाद करके उन्होंने अग्निमें डाले हुए अपने वस्त्रको फिर ले लिया था। परमधर्म अर्थात् भगवत्प्रेम­लक्षणाभक्तिके विस्तारके लिये दोनों भाइयोंके समान फिर कोई नहीं प्रकट हुआ।

एक बार योगियोंसे माधवदासजीका विवाद हुआ। एक योगीने कहा – “मैं भी अपने उपकरण अग्निमें डालता हूँ तुम भी अपनी डालो। जिसके उपकरण नहीं जलेंगे, उसीका पक्ष प्रमाण मान लिया जाएगा।” योगीने अपने कुण्डल आदि उपकरणोंको अग्निमें डाला। माधवदासजीने कहा – “मैं अपनी कण्ठी तो अग्निमें नहीं डालूँगा, पर वस्त्र दाल देता हूँ।” उन्होंने अपना वस्त्र डाल दिया। योगीके उपकरण तो जल गए, पर माधवदासजीका वस्त्र नहीं जला। फिर माधवदासजीने अग्निमेंसे अपना वस्त्र लेकर धारण कर लिया।