॥ १८९ ॥
भक्तपच्छ ऊदारता यह निबही कल्यान की॥
जगन्नाथ को दास निपुन अति प्रभु मन भायो।
परम पारषद समुझि जानि प्रिय निकट बुलायो॥
प्रान पयानो करत नेह रघुपति सों जोर्यो।
सुत दारा धन धाम मोह तिनका ज्यों तोर्यो॥
कौंधनी ध्यान उर में लस्यो रामनाम मुख जानकी।
भक्तपच्छ ऊदारता यह निबही कल्यान की॥
मूलार्थ – भक्तका पक्ष लेना और उदारता – ये दोनों बातें कल्याणदासजीके जीवनमें निभ गईं। कल्याणदासजी जगन्नाथजीके कुशल दास थे। वे भगवान्के मनको बहुत भाते थे, भगवान्को बहुत प्रिय थे। भगवान्ने उनको अपना परम पार्षद समझकर और प्रिय जानकर उन्हें अपने निकट बुला लिया था। जब उनके प्राणके प्रयाणका समय आया अर्थात् जब शरीर छूटनेका समय आ गया तब उन्होंने श्रीरामचन्द्रजीसे अपना प्रेम जोड़ लिया, स्नेह जोड़ लिया और पुत्र, पत्नी, धन और घरके मोहको तिनकेकी भाँति तोड़ दिया। उनके हृदयमें भगवान्का कौंधनीध्यान लस गया। कौंधनीका अर्थ होता है दौड़नेवाला। दौड़नेवाला ध्यान अर्थात् मारीचका वध करनेके लिये जब भगवान् कनकमृगके पीछे दौड़े थे, वही ध्यान उनके हृदयमें धर गया। उनके मुखपर जानकीराम इस प्रकार नाम सतत विराजमान रहता था अर्थात् वे सीताराम सीताराम निरन्तर जपा करते थे। इस प्रकार कल्याणदासजीने भक्तके पक्षको भी निभा दिया और उदारता भी निभा दी।