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(श्री)रामानुज पद्धति प्रताप भट्ट लच्छमन अनुसर्यो॥
सदाचार मुनिबृत्ति भजन भागवत उजागर।
भक्तन सों अतिप्रीति भक्ति दसधा को आगर॥
संतोषी सुठि सील हृदय स्वारथ नहिं लेसी।
परमधर्म प्रतिपाल संत मारग उपदेसी॥
श्रीभागवत बखानि कै नीर क्षीर बिबरन कर्यो।
(श्री)रामानुज पद्धति प्रताप भट्ट लच्छमन अनुसर्यो॥
मूलार्थ – श्रीवल्लभाचार्यजी महाप्रभुके पूज्य पिता श्रीलक्ष्मणभट्टजीने श्रीरामानुजाचार्यजीकी पद्धतिके प्रतापका अनुसरण किया। उनका आचरण संतों जैसा था, उनकी वृत्ति मुनियों जैसी थी। वे भगवद्भजनमें और भजन करने वाले भागवतोंमें उजागर थे अर्थात् वे अत्यन्त प्रसिद्ध भगवद्भक्त थे। उन्हें भक्तोंसे प्रेम था, और दशधाभक्ति अर्थात् प्रेमा भक्तिके लक्ष्मणभट्टजी आगर अर्थात् भवन थे। वे संतोषी थे। लक्ष्मणभट्टजीका स्वभाव अत्यन्त सुन्दर था। उनके हृदयमें स्वार्थका लेश भी नहीं था। लक्ष्मणभट्टजी परमधर्म अर्थात् प्रेमा भक्तिका प्रतिपालन करते थे तथा संतमार्गका उपदेश करते थे। श्रीभागवतका व्याख्यान करके उन्होंने नीर-क्षीरका विवरण किया अर्थात् जगत्को जल और भगवद्भक्तिको दूध माना, और उसका पृथक्करण किया। इस प्रकार लक्ष्मणभट्टजीने श्रीरामानुजाचार्यजीकी पद्धतिके प्रतापका अनुसरण किया।