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नंदकुँवर कृष्णदास को निज पग तें नूपुर दियो॥
तान मान सुर ताल सुलय सुंदर सुठि सोहै।
सुधा अंग भ्रूभंग गान उपमा को को है॥
रत्नाकर संगीत रागमाला रँगरासी।
रिझये राधालाल भक्तपदरेनु उपासी॥
स्वर्नकार खरगू सुवन भक्त भजन दृढ़ ब्रत लियो।
नंदकुँवर कृष्णदास को निज पग तें नूपुर दियो॥
मूलार्थ – खरगू सुनारके पुत्र श्रीकृष्णदासजीने भक्तोंके भजनका ही दृढ़ व्रत लिया था। इसीलिये एक बार जब नृत्य करते हुए उनके चरणका नूपुर गिर गया था, तब नन्दजीके कुँवर भगवान् श्रीकृष्णचन्द्रने अपने चरणका नूपुर ही श्रीकृष्णदासजीको पहना दिया था। उनके तान, मान, स्वरके माप, स्वर, ताल, लय – ये अत्यन्त सुन्दर और सुष्ठु थे। उनके अङ्गोंकी भङ्गिमा अमृत जैसी लगती थी। उनकी भृकुटिका विलास अत्यन्त प्रिय था। उनके गानकी उपमामें इस समय कौन रहा है? कृष्णदासजी संगीतके तो महासागर थे। वे रागमाला अर्थात् अनेक रागोंके रङ्गकी राशि थे। उन्होंने अपनी संगीतगानविद्यासे राधारमणलालजीको रिझा लिया था। कृष्णदासजी भक्तोंके चरणकी रेणुके उपासक थे और उन्होंने भक्तोंकी सेवाका ही दृढ़ व्रत लिया था।