पद १७३


॥ १७३ ॥
केवलराम कलिजुग के पतित जीव पावन किया॥
भक्ति भागवत बिमुख जगत गुरु नाम न जानैं।
ऐसे लोग अनेक ऐंचि सन्मारग आने॥
निर्मल रति निहकाम अजा तें सहज उदासी।
तत्त्वदरसि तमहरन सील करुना की रासी॥
तिलक दाम नवधा रतन कृष्ण कृपा करि दृढ़ दिया।
केवलराम कलिजुग के पतित जीव पावन किया॥

मूलार्थकेवलरामजीने कलियुगके पतित जीवोंको पावन कर दिया। जो लोग भक्ति और भगवान्‌के भक्तोंसे विमुख थे, जो इस संसारमें ऐसे थे कि गुरुदेवका नाम भी नहीं जानते थे, ऐसे अनेक लोगोंको उनके बुरे मार्गसे ऐंचि अर्थात् खींचकर केवलरामजीने उन्हें सन्मार्गपर ला दिया। केवलरामजीकी भगवान्‌में भक्ति निर्मल अर्थात् निष्काम थी, किसी प्रकारकी कामना उनके मनमें नहीं थी। वे अजा अर्थात् मायासे सदैव उदास रहा करते थे, अर्थात् उदासीन थे, दूर थे। केवलरामजी तत्त्वदर्शी थे और तमहरन अर्थात् जीवोंके अन्धकारको दूर करनेवाले थे। केवलरामजी शील अर्थात् चरित्र एवं करुणाकी राशि थे। केवलरामजी भगवान् कृष्णकी कृपासे प्राप्त तिलक, कण्ठी और नवधा भक्तिरूप रत्न – इन तीनों वस्तुओंको सबको दृढ़ करके देते रहे। घर-घर जाकर वे सबको श्रीकृष्णोपासना सिखाते रहे। उन्होंने सबके गलेमें हठात् कण्ठी बँधवाई और सबको हठात् उर्ध्वपुण्ड्र तिलक लगवाया। इस प्रकार केवलरामजीने कलियुगके पतित जीवोंको भी पावन कर दिया।