पद १७०


॥ १७० ॥
अबला सरीर साधन सबल ए बाई हरिभजनबल॥
दमा प्रगट सब दुनी रामबाई (बीरा) हीरामनि।
लाली नीरा लच्छि जुगल पार्बती जगत धनि॥
खीचनि केसी धना गोमती भक्त उपासिनि।
बादररानी बिदित गंग जमुना रैदासिनि॥
जेवा हरिषा जोइसिनि कुवँरिराय कीरति अमल।
अबला सरीर साधन सबल ए बाई हरिभजनबल॥

मूलार्थ – ये बाइयाँ अर्थात् वर्याएँ, श्रेष्ठ नारीवर्य अथवा श्रेष्ठ माताएँ, शरीर तो धारण की थीं अबलाका, परन्तु ये साधनसे हो गईं थीं सबला। भले शरीरसे ये अबला रहीं हों पर अन्दरसे ये सबला थीं। इनमें सारे संसारमें प्रकट (१) दमाबाई (२) रामाबाई (३) बीराबाई (४) हीरामणि माताजी (५) श्रीलालीजी (६) श्रीनीराजी (७, ८) दो लक्ष्मीजी (९) जगत्‌में धन्यवादकी पात्र पार्वतीजी (१०) महारानी खींचनिजी (११) केशीजी (१२) धनाजी (१३) गोमतीजी जो भक्तोंकी उपासना करती थीं (१४) बादर­रानीजी अर्थात् लाखा­चारणजीकी धर्मपत्नी (१५) प्रसिद्ध गङ्गाबाईजी (१६) यमुनाबाईजी (१७) रैदासिनि अर्थात् रैदासजी महाराजकी पत्नी प्रभुता माताजी (१८) जेवाजी (१९) हरिषाजी (२०) जोइसिनजी और (२१) विमल कीर्तिवाली कुँवरिरायजी – ये माताएँ शरीरसे भले अबला रहीं हों, पर साधनसे सबला थीं।