पद १६९


॥ १६९ ॥
दासन के दासत्व को चौकस चौकी ए मड़ी॥
हरिनारायन नृपति पदम बेरछै बिराजै।
गाँव हुसंगाबाद अटल उद्धव भल छाजै॥
भेलै तुलसीदास ख्यात भट देव कल्यानो।
बोहिथ बीरा रामदास सुहेलै परम सुजानो॥
औली परमानंद के सबल धर्म कि ध्वजा गड़ी।
दासन के दासत्व को चौकस चौकी ए मड़ी॥

मूलार्थ – दासोंके दासत्वके लिये ये श्रेष्ठ भक्त सुन्दर चौकी जैसे बन गए, अर्थात् चौकीकी भाँति सुरक्षक बने। इनमें (१, २) बीरछा नामक स्थानमें महाराज हरिनारायणजी और पद्मजी सुशोभित हुए। (३, ४) मध्य प्रदेशके होशंगाबाद नामक ग्राममें अटलजी और उद्धवजी भली-भाँति सुशोभित हुए। (५, ६) भेला नामक ग्राममें तुलसीदासजी भक्त और ख्यात भट श्रीदेव­कल्याणजी (७) इसी प्रकार बोहिथमें बीराजी और (८) सुहेलेमें परम चतुर रामदासजी विराजे। (९) औली नामक ग्राममें परमानन्द­दासजीके धर्मकी ध्वजा बलपूर्वक गड़ी। इस प्रकार ये भक्त दासोंके दासत्वकी सुन्दर चौकी बन गए।