॥ १६६ ॥
श्रीअगर सुगुरु परताप तें पूरी परी प्रयाग की॥
मानस बाचक काय रामचरनन चित दीनो।
भक्तन सों अति प्रेम भावना करि सिर लीनो॥
रास मध्य निर्जान देह दुति दसा दिखाई।
आड़ो बलियो अंक महोछो पूरी पाई॥
क्यारे कलस औली ध्वजा बिदुषश्लाघा भाग की।
श्रीअगर सुगुरु परताप तें पूरी परी प्रयाग की॥
मूलार्थ – श्रेष्ठ गुरुदेव श्रीअग्रदेवाचार्य अग्रदासजीके प्रतापसे प्रयागदासजीकी पूरी परी अर्थात् उनके जीवनमें भक्ति पूर्णताको प्राप्त हो गई, अर्थात् उनका जीवन पूर्ण हो गया। प्रयागदासजीने मनसे, वाणीसे और शरीरसे भगवान्की सेवा करके अपने चित्तको रामजीके चरणोंमें लगा दिया था। भक्तोंसे प्रयागदासजीको बहुत प्रेम था, और उन्होंने वही भावना सिरपर धारण करके स्वीकारी थी। भगवान् श्रीसीतारामजीके महारासका आयोजन करके उसीके मध्य उन्होंने अपने प्राणोंका प्रयाण किया था और शरीरके प्रकाशकी दशा दिखाई थी। भाव यह है कि बिजलीके समान उनके शरीरमें चमक आई और उनकी प्राणज्योति युगलसरकार श्रीसीतारामजीके चरणोंमें लीन हो गई। इतनेपर भी आड़ो ग्राम और बलियो ग्रामके अंक अर्थात् बीच या मध्यमें ही जब महोत्सव हुआ तो उन्होंने श्रीसीतारामजीके द्वारा आरोगी गई पूरी पाई अर्थात् श्रीसीतारामजीके नैवेद्यमें जो पूड़ी-प्रसाद लगा था उसे पाया। शरीरके छोड़नेके पश्चात् भी उन्होंने क्यारे नामक ग्राममें कलश चढ़ाया और औली नामक ग्राममें भगवान्की ध्वजा चढ़ाई। इसका अर्थ यह है कि शरीर छूटनेपर भी प्रयागदासजी दिव्य शरीरसे भगवान्की सेवा करते रहे। विद्वानोंने प्रयागदासजीके भाग्यकी श्लाघा अर्थात् प्रशंसा की थी। इस प्रकार गुरुदेव श्रीअग्रदेवजीके प्रतापसे प्रयागदासजी महाराजकी पूरी परी अर्थात् उनके जीवनकी सरणि पूर्णताको प्राप्त हुई, बन गया उनका व्यक्तित्व –
पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
(ई.उ.शा.पा.)
उनका इहलोक भी पूर्ण हुआ और उनका परलोक भी पूर्ण हुआ। उन्होंने पूर्ण परमात्माकी जीवन भर पूजा की। पूर्ण परमात्मा श्रीरामचन्द्रजीकी पूर्ण कृपा प्राप्त करके अन्ततोगत्वा प्रयागदासजी पूर्ण ही तो रहे।