॥ १५१ ॥
भरतखंड भूधर सुमेरु टीला लाहा(की) पद्धति प्रगट॥
अंगज परमानंददास जोगी जग जागै।
खरतर खेम उदार ध्यान केसो हरिजन अनुरागै॥
सस्फुट त्योला शब्द लोहकर बंस उजागर।
हरीदास कपिप्रेम सबै नवधा के आगर॥
अच्युत कुल सेवैं सदा दासन तन दसधा अघट।
भरतखंड भूधर सुमेरु टीला लाहा(की) पद्धति प्रगट॥
मूलार्थ – श्रीभरतखण्ड रूप सुमेरु पर्वतपर विराजमान टीलाजी और लाहाजीकी पद्धति प्रगट हुई, जिसमें – (१) टीलाजीके पुत्र परमानन्ददासजी (२) उनके पुत्र योगिदासजी, जो सदैव जागरूक रहे (३) परमानन्दजीके जामाता खेमदासजी खरतर अर्थात् अत्यन्त प्रखर भक्त हुए और अत्यन्त उदार हुए (४) केशवदासजी तथा (५) ध्यानदासजी हरिजनों अर्थात् भगवान्के भक्तोंमें अनुराग करने वाले हुए (६) सुस्फुट सुन्दर शब्द वाले त्यौलाजी, जो लोहकर बंस अर्थात् लुहार वंशको उजागर करने वाले हुए (७) हरिदासजी जिन्हें हनुमान्जीसे प्रेम था – ये सभी नवधा भक्तिके आगर हुए। अर्थात् परमानन्ददासजीके चारों पुत्र – योगिदासजी, केशवदासजी, ध्यानदासजी और हरिदासजी, और उनके जामाता खेमजी, और लाहाजीके भी परिकर – ये सब-के-सब नवधा भक्तिके आगर थे। ये सदैव अच्युत कुल अर्थात् विरक्त श्रीवैष्णवोंकी सेवा करते थे और संतोंके प्रति इनके मनमें दशधा प्रेमलक्षणा भक्ति ऐसी थी कि जिसको कोई नष्ट नहीं कर सकता था, वह अघट थी।