पद १४९


॥ १४९ ॥
मधुकरी माँगि सेवैं भगत तिनपर हौं बलिहार कियो॥
गोमा परमानँद प्रधान द्वारिका मथुरा खोरा।
कालुष साँगानेर भलो भगवान को जोरा॥
बिट्ठल टोड़े खेम पँडा गूनोरै गाजैं।
स्याम सेन के बंस चीधर पीपार बिराजैं॥
जैतारन गोपाल को केवल कूबै मोल लियो।
मधुकरी माँगि सेवैं भगत तिनपर हौं बलिहार कियो॥

मूलार्थ – मधुकरी माँगकर जो भक्तोंकी सेवा करते हैं, उन भक्तोंपर तो मैंने अपने तन-मन-धनको बलिहार कर दिया, क्योंकि वे चुटकी माँगते हैं और फिर भक्तोंको खिलाते हैं। जिनमें – (१) गोमाजी, जो द्वारकामें रहते हैं (२) प्रधान रूपसे परमानन्दजी, जो मथुराके खोरामें निवास करते हैं अर्थात् मथुरामण्डलमें निवास करते हैं (३, ४) कालुष और साँगानेरमें दो भगवानोंका जोड़ा – दोनों भगवानदास मधुकरी माँगकर संतोंकी सेवा करते हैं (५) टोड़े ग्राममें विट्ठलजी (६) खेमजी और (७) गुन्नौरे गाँवमें देवादास पंडाजी मधुकरी माँगकर संतोंकी सेवा करते हुए गर्जन किया करते हैं और (८) श्रीसेनके वंशमें विराजमान श्यामदासजी (९) चीधरजी, जो पीपारे गाँवमें विराजते रहते हैं (१०) इसी प्रकार जैतारणमें रहने वाले केवल कूबादासजी (केवलरामजी) ने तो गोपालको ही मोल ले लिया और जानरायजीको विराजमान करा लिया।

कहा जाता है कि कूबाजी (केवलरामजी) जातिके कुम्हार थे। वे संतोंकी सेवा करते थे। एक बार संतोंकी सेवामें उन्हें धनकी आवश्यकता पड़ी। एक महाजनने कहा– “आप मेरा कुआँ खोद दीजिये, तो मैं आपको धन दे दूँगा।” कूबाजीने मान लिया, और धन ले आकर संतोंको खिलाया। कुआँ खोदते-खोदते जब कुएँके नीचे रेत आ गई और बहुत सारी धूलका एक डग्गर कूबाजीके शरीरपर पड़ गया तब कूबाजी नीचे चले गए परन्तु भगवान्‌ने उन्हें बचाया। वे मरे नहीं। कूबाजी एक महीने तक सीता­राम सीता­राम जप करते रहे। लोगोंने जब आकर सुना कि सीता­राम सीता­रामकी धुन सुनाई पड़ रही है, तब गाँववालोंने आकर मिट्टी निकाली और देखा वहाँ उस कुएँके नीचे एक स्थान बन गया था जहाँ कूबाजी बैठे हुए थे। एक स्वर्णपात्र रखा था और कूबाजी भजन कर रहे थे। परन्तु धूलके डग्गरके लगनेसे उनकी कमरमें थोड़ा-सा कूबड़ निकल गया था इसलिये उन केवलरामजीको कूबाजी कहते थे। कूबाजीपर जानरायजी इतने प्रभावित हुए थे कि एक संत भगवान् श्रीरामका श्रीविग्रह ले जा रहे थे, वे जब कूबाजीके यहाँ आए तो भगवान्‌को देखकर कूबाजीने संकल्प किया– “आप यहीं विराज जाइये।” भगवान् वहीं विराज गए, नहीं गए। उन्हीं भगवान्‌का दर्शन करके गोस्वामीजीने गीतावलीमें लिखा – जागिये कृपानिधान जानराय रामचन्द्र जननि कहे बार बार भोर भयो प्यारे (गी. १.३८.१)। इस प्रकार केवलराम कूबाजीने तो भगवान्‌को ही मोल ले लिया और भगवान् जानराय, जिन्हें दूसरे स्थानपर संत ले जा रहे थे, कूबाजीके यहाँसे नहीं गए तो नहीं ही गए।