पद १४८


॥ १४८ ॥
श्रीस्वामी चतुरोनगन मगन रैनदिन भजन हित॥
सदा जुक्त अनुरक्त भक्तमंडल को पोषत।
पुर मथुरा ब्रजभूमि रमत सबही को तोषत॥
परम धरम दृढ़ करन देव श्रीगुरु आराध्यो।
मधुर बैन सुठि ठौर ठौर हरिजन सुख साध्यो॥
संत महंत अनंत जन जस बिस्तारत जासु नित।
श्रीस्वामी चतुरोनगन मगन रैनदिन भजनहित॥

मूलार्थश्रीचतुरदास नागास्वामीजी सतत भजनके लिये ही रात-दिन मग्न रहते थे। वे निरन्तर युक्त और अनुरक्त भावसे भक्तमण्डलका पोषण करते थे। वे मथुरापुरमें और व्रजभूमिमें रमते रहते थे। वे निरन्तर हरिजनोंको संतुष्ट करते रहते थे। परम धर्मको दृढ़ करनेके लिये उन्होंने देवता और सद्गुरुकी आराधना की, और मधुर एवं सुन्दर वचनसे ठौर-ठौरपर भगवान्‌के भक्तोंके सुखको ही साधा। अनेक संत, महंत और भगवद्भक्तजन जिनके विमल यशका विस्तार करते रहते थे – ऐसे स्वामी चतुरदासजी नागा सतत भजनके लिये रात-दिन मग्न रहते थे।

भगवान्‌की आज्ञासे स्वामी चतुरदासजी निरन्तर दुग्धपान करते थे और व्रजवासियोंसे माँग-माँगकर दूध पीते थे। कभी कोई गोपी विनोदमें दूध छिपा देती थी तो उसके घरमें जाकर ढूँढ-ढूँढकर दूध पीते थे। इस प्रकार अपने भक्तिपूर्ण विनोदसे वे भगवद्भक्तोंको निरन्तर संतुष्ट करते रहते थे।