पद १३२


॥ १३२ ॥
(श्री)बल्लभ जू के बंस में गुणनिधि गोकुलनाथ अति॥
उदधि सदा अच्छोभ सहज सुंदर मितभाषी।
गुरु वर तन गिरिराज भलप्पन सब जग साखी॥
बिट्ठलेश की भक्ति भयो बेला दृढ़ ताके।
भगवत तेज प्रताप नमित नरबर पद जाके॥
निर्ब्यलीक आशय उदार भजन पुंज गिरिधरन रति।
(श्री)बल्लभ जू के बंस में गुणनिधि गोकुलनाथ अति॥

मूलार्थ – श्रीवल्लभाचार्यजीके वंशमें श्रीवल्लभाचार्यजीके पौत्र तथा विट्ठलनाथजीके पुत्र श्रीगोकुलनाथजी गुणोंकी निधि हुए। वे समुद्रके समान सदैव अक्षोभ रहते थे। वे स्वभावतः बहुत सुन्दर और मितभाषी थे। उनका शरीर गिरिराज (गोवर्धन)के समान गुरु अर्थात् भारी और सुन्दर था। जिस प्रकार गोवर्धन पर्वतपर भगवान्‌का नित्य विहार होता है, उसी प्रकार गोकुलनाथजीके शरीरके रोम-रोममें भगवान् रमे रहते थे और विराजमान रहते थे। बाहर और भीतर उनके प्रत्येक अङ्गमें भगवान्‌का ही निवास था। उनके भलप्पनका सारा संसार साक्षी था। वे विट्ठलेशजीके भक्तिसागरके लिये दृढ़ किनारेके समान थे। गोकुलनाथजी भगवान्‌की विभूति थे, इसलिये भगवान्‌के तेज और प्रतापके कारण श्रेष्ठ राजागण भी उनके चरणोंमें नमित हुआ करते थे। उनका हृदय निष्कपट था एवं उनका विचार अत्यन्त उदार था। वे भजनके पुञ्ज थे और गिरिधरन अर्थात् पर्वत धारण करने वाले भगवान्‌के चरणोंमें उनकी दृढ़ रति अर्थात् भक्ति थी।