॥ १२३ ॥
हरिबंसचरण बल चतुर्भुज गौडदेश तीरथ कियो॥
गायो भक्ति प्रताप सबहि दासत्व दृढ़ायो।
राधावल्लभ भजन अननिता वरग बढ़ायो॥
मुरलीधर की छाप कबित अति ही निर्दूषण।
भक्तन की अँघ्रिरेणु वहै धारी सिरभूषण॥
सतसंग महा आनन्द में प्रेम रहत भीज्यो हियो।
हरिबंसचरण बल चतुर्भुज गौडदेश तीरथ कियो॥
मूलार्थ – हरिवंश गोस्वामीजीके चरणके बलसे चतुर्भुजदासजीने गौड़वाना देशको तीर्थ जैसा कर दिया था। वहाँ बलि चढ़ती थी, पर चतुर्भुजदासजीने जाकर भगवती देवीसे कह दिया और देवीने सबको आज्ञा दी कि आजसे बलिप्रथा समाप्त हो जाएगी। चतुर्भुजदासजीने भक्तिका प्रताप गाया और सबके मनमें दासत्वको दृढ़ कर दिया। उन्होंने राधावल्लभलालके भजनका प्रताप सुनाकर अनन्यताका वर्ग बढ़ाया। उनकी मुरलीधरकी छाप थी। उनकी कविता अत्यन्त निर्दोष थी। वे भक्तोंकी चरणरेणुको ही अत्यन्त आराध्य मानते थे और उसीको ही उन्होंने अपने सिरका आभूषण बना रखा था। चतुर्भुजजी सदैव सत्संगके महान् आनन्दमें रहते थे। उनका हृदय प्रेमसे भीगा रहा करता था।