पद ११९


॥ ११९ ॥
कलिजुग भक्ति कररी कमान रामरैन कैं रिजु करी॥
अजर धर्म आचर्यो लोकहित मनो नीलकँठ।
निंदक जग अनिराय कहा (महिमा) जानैगो भूसठ॥
बिदित गँधर्बी ब्याह कियो दुष्यंत प्रमानै।
भरत पुत्र भागवत स्वमुख सुकदेव बखानै॥
और भूप कोउ छ्वै सकै दृष्टि जाय नाहिंन धरी।
कलिजुग भक्ति कररी कमान रामरैन कैं रिजु करी॥

मूलार्थ – कलियुगमें तो भक्ति कमानके समान बहुत कठिन है, परन्तु उसी भक्तिको रामरयनजीके व्यक्तित्वने सीधा कर दिया अर्थात् झुका दिया। स्वयं उन्होंने कभी न नष्ट होने वाले वैष्णवधर्मका पालन किया। लोकके हितमें रामरयनजी नीलकण्ठ अर्थात् शिवजीके समान थे। निन्दक संसार उन्हें देखकर चिढ़ता था, उनकी निन्दा करता था क्योंकि भूसठ (पृथ्वीका शठ) अर्थात् कुत्ता इस महिमाको क्या जानेगा? उन्होंने सबको बताकर दुष्यन्तके समान ही गान्धर्व विवाह किया था, जिन दुष्यन्तके यहाँ भरत जैसे पुत्र हुए – जिनका सुयश भागवतमें शुकाचार्यजीने अपने मुखसे कहा। महाराज रामरयनके आदर्शको और कोई राजा स्पर्श ही कैसे कर सकता है? उनतक किसीकी दृष्टि भी नहीं पहुँच सकती।

इस प्रसंगमें प्रियादासजी कुछ और कहते हैं और अक्षर कुछ और कहता है। प्रियादासजी कहते हैं कि शरत्पूर्णिमाके दिन जब भगवान्‌का रास हो रहा था, तब श्रीरामरयनजीने भगवान्‌पर अपनी बेटीको न्यौछावर कर दिया था (भ.र.बो. ४८९)। परन्तु बिदित गँधर्बी ब्याह कियो दुष्यंत प्रमानै – यहाँके अक्षरोंको देखकर कुछ ऐसा लगता है कि दुष्यन्तकी भाँति ही रामरयनजीने गान्धर्व विवाह किया। इसका तात्पर्य यह है कि जैसे दुष्यन्तजीने शकुन्तलाके साथ गान्धर्व विवाह किया था, उसी प्रकार रामरयनजीने भी अपनी पत्नीके साथ गान्धर्व विवाह यह कहकर किया था – “तुम निरन्तर भगवान् और भक्तोंकी सेवा करोगी तभी मैं तुम्हें स्वीकारूँगा।” इस अनुबन्धको रामरयनजीकी पत्नीने स्वीकार किया था। इसीलिये उन्होंने इनसे गान्धर्व विवाह किया था। जिस प्रकार दुष्यन्तजीके यहाँ जन्मे थे भरत जैसे पुत्र, जिनकी चर्चा शुकाचार्यजीने की, उसी प्रकार रामरयनके यहाँ भी किशोरसिंहजी जैसे पुत्रका जन्म हुआ जिसकी प्रशंसा संपूर्ण संतोंने की थी। मुझे तो इसी अर्थकी प्रतीति यहाँ हो रही है, क्योंकि इस छप्पयके अक्षर बेटीके गान्धर्व विवाहकी चर्चा नहीं कर रहे हैं, अपितु ऐसा लगता है कि दुष्यन्तके ही समान स्वयं महाराजजीने ही गान्धर्व विवाह किया था, जिसकी वहाँके लोगोंने निन्दा की थी।