पद ११७


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भक्तन को आदर अधिक राजबंस में इन कियो॥
लघु मथुरा मेड़ता भक्त अति जैमल पोषे।
टोड़े भजन निधान रामचँद हरिजन तोषै॥
अभयराम एक रसहिं नेम नीवाँ के भारी।
करमसील सुरतान बीरम भूपति ब्रतधारी॥
ईश्वर अखैराज रायमल कन्हर मधुकर नृप सर्वसु दियो।
भक्तन को आदर अधिक राजबंस में इन कियो॥

मूलार्थ – इन राजवंशियोंने भक्तोंका बहुत आदर किया, जिनमें (१) जयमलजीने तो मेड़ताको छोटी मथुरा बना दिया था, उन्होंने भक्तोंका बहुत परिपोषण किया। (२) भजनके निधान टोड़े निवासी रामचन्द्रजीने भक्तजनोंको अत्यन्त संतुष्ट किया। (३) अभयरामजीने एकरस­वृत्तिसे भगवान्‌के भक्तोंकी सेवा की। (४) नीवाँजीका नियम बहुत बड़ा था। इसी प्रकार (५) कर्मशीलजी (६) सुरतानजी और (७) वीरमजी – इन राजाओंने संतोंकी सेवामें अपने व्रतको अक्षुण्ण रखा। (८) ईश्वरजी (९) अक्षयराजजी (१०) रायमलजी (११) कन्हरजी और (१२) महाराज मधुकर साहजीने तो सब कुछ दे डाला, पर भक्तोंको संतुष्ट रखा।