॥ ११६ ॥
आमेर अछत कूरम को द्वारकानाथ दर्शन दियो॥
कृष्णदास उपदेश परम तत्व परिचै पायो।
निर्गुण सगुण निरूपि तिमिर अग्यान नशायो॥
काछ बाच निकलंक मनो गांगेय युधिष्ठिर।
हरिपूजा प्रह्लाद धर्मध्वजधारी जग पर॥
पृथीराज परचो प्रगट तन शंख चक्र मंडित कियो।
आमेर अछत कूरम को द्वारकानाथ दर्शन दियो॥
मूलार्थ – आमेरमें रहते हुए ही कछवाहा वंशके पृथ्वीराजजीको द्वारकानाथ भगवान्ने दर्शन दिया। श्रीपयहारी कृष्णदासजीके उपदेशसे पृथ्वीराजजीने परमतत्त्वका परिचय पा लिया था। श्रीपयहारीजी महाराजने निर्गुण और सगुणका निरूपण करके पृथ्वीराजजीके अज्ञान रूप अन्धकारको नष्ट कर दिया था। पृथ्वीराजजीके कर्म और वाणी निष्कलङ्क थे। वे भीष्मके समान जितेन्द्रिय थे और युधिष्ठिरके समान सत्यवादी थे। वे प्रह्लादके समान भगवान्की पूजा करते थे और उन्होंने वैष्णवधर्मकी ध्वजाको धारण किया था। संसारसे वे परे हो चुके थे। पृथ्वीराजजीका परिचय प्रकट था अर्थात् उन्हें सबने जान लिया था। उनका शरीर भगवान्के शङ्ख-चक्रसे मण्डित हो गया था।
एक बार पयहारीजी महाराज पृथ्वीराजजीके यहाँ पधारे। पृथ्वीराजजीने भी उनके साथ द्वारका चलनेका निर्णय ले लिया। दीवानके कहनेपर पयहारीजी महाराजने पृथ्वीराजजीको घरमें रहनेकी ही आज्ञा दी। पृथ्वीराजने कहा – “मैं भगवान्के दर्शन कैसे करूँगा?” पयहारीजीने कहा – “आज ही आपको भगवान्के दर्शन हो जाएँगे, गोमतीमें आपका स्नान हो जाएगा, और आपके शरीरपर शङ्ख-चक्रका चिह्न भी लग जाएगा।” आधी रातमें यही हुआ। भगवान्ने पृथ्वीराजजीसे कहा – “चलो! मैं तुम्हें दर्शन देने आया हूँ।” भगवान्ने दर्शन दिया और पृथ्वीराजजीके अँगनेमें ही गोमतीसागरका संगम प्रस्तुत कर दिया। भगवान्ने कहा – “गोमतीस्नान कर लो।” पृथ्वीराजजीने स्नान किया और उनके हाथमें शङ्ख-चक्रका चिह्न लग गया। रात-दिन वे बहुत सोते रहे। महारानीने जगाया तो देखा पृथ्वीराजजीका शरीर भीगा हुआ था और उसपे शङ्ख-चक्रका चिह्न बना हुआ था। पृथ्वीराजजीने महारानीसे कहा – “तुम भी मेरे शरीरका स्पर्श करके उसी प्रकारका आनन्द लो।” महारानीने भी भीगे कपड़ेका स्पर्श किया, सभी लोगोंने देखा और पृथ्वीराजजीका परिचय प्रकट हो गया।