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चतुर्भुज नृपति की भक्ति को कौन भूप सरवर करैं॥
भक्त आगमन सुनत सन्मुख जोजन एक जाई।
सदन आनि सतकार सदृश गोविंद बड़ाई॥
पाद प्रछालन सुहथ राय रानी मन साँचे।
धूप दीप नैवेद्य बहुरि तिन आगे नाचे॥
यह रीति करौलीधीश की तन मन धन आगे धरैं।
चतुर्भुज नृपति की भक्ति को कौन भूप सरवर करैं॥
मूलार्थ – महाराज चतुर्भुजदासजीकी भक्तिकी तुलना कौन राजा कर सकता है? उन्होंने अपने राज्यके चारों ओर चार-चार कोसपर चौकियाँ बना दी थीं, और कहा था कि जब भी कोई भक्त आए, उन्हें समाचार मिलना चाहिये। जब भी चतुर्भुजजी भक्तका आगमन सुनते थे, तब वे चार कोस आगे जाकर उनकी अगवानी करते थे, उन्हें घरमें लाते थे, उनका सत्कार करते थे और भगवान्के समान ही उनका आदर करते थे। राजा और रानी अपने हाथसे वैष्णव भक्तके चरणका प्रक्षालन करते थे। उनका मन भगवत्प्रेममें सत्य था। वे धूप, दीप और नैवेद्य समर्पित करके भक्तोंके सामने नाचते थे। करौलीके अधिपति चतुर्भुजजीकी यही रीति थी। वे तन, मन और धन – सब कुछ आगे अर्पित कर देते थे। इस प्रकार उनकी तुलना कौन राजा कर सकता है?
महाराज चतुर्भुजजीकी बड़ी-बड़ी परीक्षाएँ ली गईं। सभी परीक्षाओंमें वे खरे उतरे और उन्होंने अपनी भक्तिका प्रभाव परीक्षकोंपर छोड़ा।