॥ ११२ ॥
माधव दृढ़ महि ऊपरै प्रचुर करी लोटा भगति॥
प्रसिध प्रेम की बात गढ़ागढ़ परचै दीयो।
ऊँचे तें भयो पात श्याम साँचौ पन कीयो॥
सुत नाती पुनि सदृश चलत ऊही परिपाटी।
भक्तन सों अति प्रेम नेम नहिं किहुँ अँग घाटी॥
नृत्य करत नहिं तन सँभार समसर जनकन की सकति।
माधव दृढ़ महि ऊपरै प्रचुर करी लोटा भगति॥
मूलार्थ – श्रीमाधवदासजीने पृथ्वीके ऊपर दृढ़ लोटाभक्तिको प्रसिद्ध किया था। ये भगवत्प्रेममें गिर पड़ते थे, और लोट-लोटकर भगवान्का कीर्तन करते थे। यह प्रेमकी बात बहुत प्रसिद्ध हुई और गढ़ागढ़ नामके स्थानपर उन्होंने इसका परिचय दिया। एक बार राजाने उनकी परीक्षा लेनेके लिये तीसरे मंजिलेपर भगवन्नाम संकीर्तनका आयोजन किया और श्रीमाधवदासजीने कीर्तन प्रारम्भ किया। कीर्तन करते-करते वे गिर पड़े और लोटने लगे। लोटते-लोटते तीसरे मंजिलेसे माधवदासजी गिर पड़े। तीसरे मंजिलेसे गिरकर वे खौलते हुए तेलकी कढ़ाहीमें गिरे, परन्तु उनको किसी प्रकारका आघात नहीं लगा। भगवान्ने उनकी प्रतिज्ञा सत्य की। इसी बातके लिये नाभाजी कहते हैं – ऊँचेते भयो पात अर्थात् तीसरी मंजिलसे उनका पतन अर्थात् गिरना हुआ, फिर भी भगवान्ने उनकी प्रतिज्ञा सत्य कर दी। उनके सुत अर्थात् पुत्र और नाती अर्थात् पौत्र भी इसी परिपाटीपर चलते थे। भक्तोंसे उन्हें अत्यन्त प्रेम था। उनके नियममें किसी प्रकारकी न्यूनता नहीं आई। माधवदासजी नृत्य करते समय किसी प्रकारकी अपने शरीरकी संभाल नहीं करते थे। उनकी तुलना तो विदेहवंशके उन राजाओंसे की जा सकती है, जिन्होंने भगवत्प्रेममें अपने शरीरका ध्यान समाप्त कर दिया था।