पद १११


॥ १११ ॥
संसार सकल ब्यापक भई जकरी जनगोपाल की॥
भक्ति तेज अति भाल संत मंडल को मंडन।
बुधि प्रवेश भागवत ग्रंथ संसय को खंडन॥
नरहड़ ग्राम निवास देश बागड़ निस्तार्यो।
नवधा भजन प्रबोध अननि दासन ब्रत धार्यो॥
भक्त कृपा बांछी सदा पदरज राधालाल की।
संसार सकल ब्यापक भई जकरी जनगोपाल की॥

मूलार्थ – संपूर्ण संसारमें श्रीजनगोपालजीकी जकरी अर्थात् जयकरी (पंद्रह मात्राका छन्द) व्याप्त हो गई। उनके मस्तकपर भक्तिका अत्यन्त तेज था। वे संतमण्डलके आभूषण थे। उनकी बुद्धिका भागवतजीमें प्रवेश था। वे सभी ग्रन्थोंमें संशयका खण्डन करनेमें समर्थ थे। जनगोपालजीका निवास नरहड़ ग्राममें था। उन्होंने बांगड़ देशका उद्धार किया था। भागवतजीमें वर्णित नवधा भजन अर्थात् नवधा भक्तिका उन्हें प्रबोध अर्थात् ज्ञान हो चुका था। जनगोपालजीने अनन्य सेवक­व्रतको धारण किया था। उन्होंने सतत भक्तोंकी कृपा और श्रीराधालालजीके चरणकी धूलिकी कामना की थी। जनगोपालजीने हरिव्यास­देवाचार्यके शिष्य बनकर पूर्ण भगवद्भजन किया था।