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श्रीमुख पूजा संत की आपुन तें अधिकी कही॥
यहै बचन परमान दास गाँवरी जटियाने भाऊ।
बूँदी बनियाराम मँडौते मोहनबारी दाऊ॥
माडौठी जगदीसदास लछिमन चटुथावल भारी।
सुनपथ में भगवान सबै सलखान गुपाल उधारी॥
जोबनेर गोपाल के भक्त इष्टता निरबही।
श्रीमुख पूजा संत की आपुन तें अधिकी कही॥
मूलार्थ – श्रीमद्भागवतमें भगवान्ने अपने ही श्रीमुखसे संतोंकी पूजाको अपनी पूजासे अधिक माना है। इसी वचनको प्रमाण मानकरके जीवनका निर्वाह करते हैं – (१) गाँवरीमें दासजी (२) जटियाने स्थानपर भाऊजी (३) बूँदीमें बनियारामजी (४) मँडौते स्थानपर दाऊ मोहनबारीजी (५) माडौठीमें जगदीशदासजी (६) चटुथावल स्थानपर भारी अर्थात् विशाल व्रत धारण करने वाले लक्ष्मणजी (७) सुनपथमें भगवानजी (८) सलखान स्थानके गोपालजी, जिन्होंने तो सभी ग्रामवासियोंका उद्धार कर दिया और (९) जोबनेरके गोपालजी, जिनकी भक्त-इष्टताका पूर्ण निर्वहण हुआ।