पद १०१


॥ १०१ ॥
बदरीनाथ उड़ीसे द्वारिका सेवक सब हरिभजन पर॥
केसव पुनि हरिनाथ भीम खेता गोबिँद ब्रह्मचारी।
बालकृष्ण बड़भरत अच्युत अपया ब्रतधारी॥
पंडा गोपीनाथ मुकुँद गजपती महाजस।
गुननिधि जसगोपाल दियो भक्तन को सरबस॥
श्रीअंग सदा सानिधि रहैं कृत पुन्यपुंज भल भाग भर।
बदरीनाथ उड़ीसे द्वारिका सेवक सब हरिभजन पर॥

मूलार्थ – अर्थात् बदरीनाथमें, जगन्नाथ­पुरीमें और द्वारकामें ये सभी सेवक भगवान्‌के भजनमें परायण थे – (१) श्रीकेशवजी (२) श्रीहरिनाथजी (३) श्रीभीमजी (४) श्रीखेताजी (५) श्रीगोविन्द ब्रह्मचारीजी (६) श्रीबालकृष्णजी (७) श्रीबड़भरतजी (८) श्रीअच्युतजी (९) श्रीअपया व्रतधारीजी अर्थात् दूध न पीकर व्रत करने वाले संत अपयाजी (१०) श्रीगोपीनाथ पंडाजी (११) श्रीमुकुन्दजी (१२) महायशस्वी श्रीरुद्रप्रताप गजपतिजी (पुरी नरेश) (१३) श्रीगुणनिधिजी और (१४) श्रीजसगोपालजी जिन्होंने भक्तोंको सब कुछ दे दिया। ये सदैव श्रीअङ्गके सान्निध्यमें रहते हैं, इन्होंने अनन्त पुण्य किया है, और इनके मस्तकपर श्रेष्ठ भाग्य सुशोभित होता रहता है।