पद ०९९


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अभिलाष अधिक पूरन करन ये चिंतामणि चतुरदास॥
सोम भीम सोमनाथ बिको बिसाखा लमध्याना।
महदा मुकुंद गनेस त्रिबिक्रम रघु जग जाना॥
बाल्मीक बृधब्यास जगन झाँझू बिट्ठल आचारज।
हरिभू लाला हरिदास बाहुबल राघव आरज॥
लाखा छीतर उद्धव कपूर घाटम घूरी कियो प्रकास।
अभिलाष अधिक पूरन करन ये चिंतामणि चतुरदास॥

मूलार्थ – ये दास स्वयं चतुर होकर दूसरोंकी अभिलाषाको पूर्ण करनेमें चिन्तामणिके समान हुए – (१) श्रीसोमजी (२) श्रीभीमजी (३) श्रीसोमनाथजी (४) श्रीबिकोजी (५) श्रीविशाखाजी (६) श्रीलम्बध्यानजी (७) श्रीमहदाजी (८) श्रीमुकुन्दजी (९) श्रीगणेशजी (१०) श्रीत्रिविक्रमजी (११) श्रीरघुजी, जिन्हें सारा संसार जानता है (१२) श्रीवाल्मीकिजी (१३) श्रीवृद्धव्यासजी (१४) श्रीजगनजी (१५) श्रीझाँझूजी (१६) श्रीविट्ठलाचार्यजी (१७) श्रीहरिभूजी (१८) श्रीलाला हरिदासजी (१९) श्रीबाहुबलजी (२०) श्रीआचार्य राघवजी (२१) श्रीलाखाजी (२२) श्रीछीतरजी (२३) श्रीउद्धवजी (२४) श्रीकपूरजी (२५) श्रीघाटमजी, और (२६) श्रीघूरीजी। इन्होंने अपनी भक्तिका प्रकाश किया। और ये स्वयं चतुर भगवद्भक्त होकर अन्योंकी अधिक अभिलाषाको पूर्ण करनेके लिये चिन्तामणिके समान बन गए।