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करुना छाया भक्तिफल ए कलिजुग पादप रचे॥
जती रामरावल श्याम खोजी सँत सीहा।
दल्हा पदम मनोरथ राका बाँका द्यौगू जप जीहा॥
जाड़ा चाचा गुरू सवाई चाँदा नापा।
पुरुषोत्तम सों साँच चतुर कीता मन (को जेहि) मेट्यो आपा॥
मतिसुंदर धीङ् धाङ् श्रम संसारनाच नाहिन नचे।
करुना छाया भक्तिफल ए कलिजुग पादप रचे॥
मूलार्थ – कलियुगमें ये भक्त ऐसे पादप, ऐसे वृक्ष बने, जिनकी करुणा ही छाया और भक्ति ही फल बन गई – (१) श्रीयतिराम (२) श्रीरामरावल (३) श्रीश्याम खोजी (४) श्रीसंत सीहाजी (५) श्रीदल्हाजी (६) श्रीपद्मजी (७) श्रीमनोरथजी (८) श्रीराका-बाँकाजी (९) श्रीद्योगूजी, जो जिह्वासे राम-नामका जप करते रहते हैं (१०) जाड़ा चाचा गुरुजी (११) सवाईजी (१२) चाँदाजी (१३) नापाजी (१४) भगवान् पुरुषोत्तमसे सच्ची प्रीतिका निर्वहण करने वाले चतुरजी और (१५) कीताजी, जिन्होंने मनके अहंकारको मिटा दिया है। इनकी बुद्धि अत्यन्त सुन्दर थी। ये संसारके ध्रीङ्-ध्राङ् (यह नृत्यकी विधामें पखावजके बोलका अनुकरण है) जैसे मृदङ्गकी चकाचौंधमें कभी भी मायाके नाचमें नहीं नाचे। अर्थात् संसारके ध्रीङ्-ध्राङ् जैसे चकाचौंधी मृदङ्गी स्वरमें ये कभी नहीं भूले और संसारकी मायाके नाचमें ये कभी नहीं नाचे। ये भक्त अद्भुत थे।
श्रीश्याम खोजीजी – इनके गुरुदेवजीने कहा था – “मेरे शरीर छोड़नेपर जब घण्टा बज जाए तो जान लेना कि मैं मुक्त हो गया।” संयोगसे गुरुदेवने शरीर छोड़ा, परन्तु घण्टा नहीं बजा। सब लोग बहुत चिन्तित हुए कि ऐसा क्या हो गया? ऐसा क्यों हो गया होगा? अनन्तर खोजीजी आए। उन्होंने ढूँढा। ऊपर एक आम लटका हुआ था। वे समझ गए। उन्होंने कहा – “गुरुदेवने अन्तमें इस आमपर दृष्टि डाली होगी। उन्होंने सोचा होगा कि इस आमके फलका यदि भगवान्को भोग लगा दिया जाता तो कितना सुन्दर होता! वे ऐसा नहीं कर पाए, और उनका शरीर छूट गया। इससे उनकी जीवात्मा कीड़ेका शरीर धारण करके आमके भीतर चली गई है। इस आमको ले लिया जाए, भोग लगा दिया जाए, तो गुरुदेवकी मुक्ति हो जाएगी।” उन्होंने तुरन्त आमको तोड़ा, और उसको ज्यों चीरा, तो बीचमें कीड़ा था। खोजीजीने भगवान्को भोग लगाया। कीड़ा उड़ा, घण्टा बजा और गुरुदेवकी मुक्ति हो गई। खोजीजीके सद्गुरुदेव भगवान्के नित्य सेवक बन गए।