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ब्रजबल्लभ बल्लभ परम दुर्लभ सुख नयनन दिये॥
नृत्य गान गुन निपुन रास में रस बरषावत।
अब लीला ललितादि बलित दंपतिहि रिझावत॥
अति उदार निस्तार सुजस ब्रजमंडल राजत।
महा महोत्सव करत बहुत सबही सुख साजत॥
श्रीनारायनभट्ट प्रभु परम प्रीति रस बस किये।
ब्रजबल्लभ बल्लभ परम दुर्लभ सुख नयनन दिये॥
मूलार्थ – श्रीव्रजवल्लभजी सबको आनन्द देने वाले, सबके प्रिय और सबके नेत्रोंको दुर्लभ सुख देने वाले थे। वे नृत्य और गानमें अत्यन्त निपुण थे और इसलिये वे रासमें रसकी वर्षा करते थे। वे अपनी दिव्य और अन्तरङ्ग लीलाओंसे ललितादिसे युक्त होकर, अर्थात् अपनी दिव्य-दिव्य लीलाओंके द्वारा ललिता आदि सखियोंको प्रकट करके दम्पती श्रीराधाकृष्णको रिझाते रहते थे। उनका निस्तार अत्यन्त उदार था। यहाँ निस्तार शब्द विस्तारके अर्थमें प्रयुक्त है, अथवा निस्तार शब्दका अर्थ दान भी किया जा सकता है। उनका सुयश व्रजमण्डलमें सुशोभित हो रहा था। वे महामहोत्सव करते थे, सबको सुख देते थे, और सबके सुखको शृङ्गारित करते रहते थे। इस प्रकार अपनी परम प्रीतिसे और अपने रससे श्रीनारायणभट्ट प्रभुको भी उन्होंने अपने वशमें कर लिया था, और सबको प्रिय होकर श्रीव्रजवल्लभजीने सबके नेत्रोंको दुर्लभ सुख दिया था।