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कमलाकर भट जगत में तत्वबाद रोपी धुजा॥
पंडित कला प्रबीन अधिक आदर दें आरज।
संप्रदाय सिर छत्र द्वितिय मनों मध्वाचारज॥
जेतिक हरि अवतार सबै पूरन करि जानै।
परिपाटी ध्वज बिजै सदृस भागवत बखानै॥
श्रुति स्मृती संमत पुरान तप्तमुद्राधारी भुजा।
कमलाकर भट जगत में तत्वबाद रोपी धुजा॥
मूलार्थ – श्रीकमलाकरभट्टने तत्त्ववादकी ध्वजाको ही इस संसारमें गाड़ दिया था। वे शास्त्रोंके महान् पण्डित थे और कलामें प्रवीण थे। आरज अर्थात् आर्यजन (श्रेष्ठजन) उन्हें बहुत आदर देते थे। उन्हें संप्रदायका छत्र मिला था, जिसे उन्होंने अपने सिरपर लगाया था। ऐसा लगता था मानों वे द्वितीय मध्वाचार्य ही हैं। भगवान्के जितने अवतार हैं, उन्हें वे पूर्ण करके जानते थे। विजयध्वजकी टीकाकी परिपाटीके अनुसार ही वे भागवतजीका व्याख्यान करते थे। कमलाकरभट्टने श्रुतिसम्मत, स्मृतिसम्मत और पुराणसम्मत तप्तमुद्राको अपनी भुजापर धारण किया था।